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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
की श्रोत्रेन्द्रिय का स्पर्श करके ही अपनी अनुभूति कराते हैं। संयोग से, आज विज्ञान ने भी ध्वनि तरंगों के प्रसरित होने की बात को स्वीकार कर लिया है, अतः, जैनों का यह कथन कि श्रोत्रेन्द्रिय प्राप्यकारी है, वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध हो जाता है ।
प्रस्तुत शोधग्रन्थ के दसवें अध्याय में रत्नप्रभसूरि ने बौद्ध-दर्शन के सामान्य के स्वरूप तथा उसे काल्पनिक मानने और सामान्य का निषेध करके विशेष की सत्ता को स्वीकार करने की समीक्षा की है। बौद्ध-दर्शन सामान्य की सत्ता को स्वीकार नहीं करता तथा यह मानता है कि सामान्य मात्र काल्पनिक है, अनुभव में हमें केवल विशेष ही परिलक्षित होता है, अतः, वे सामान्य को काल्पनिक मानकर उसकी सत्ता को अस्वीकार करते हैं और मात्र विशेष की सत्ता को ही मानते हैं। इसके विपरीत, जैन- दार्शनिकों की मान्यता यह रही है कि प्रत्येक वस्तु सामान्य- विशेषात्मक ही रही है। वह जाति या समष्टि के रूप में सामान्य है और व्यक्ति (व्यष्टि) के रूप में विशेष है। प्रस्तुत अध्याय में रत्नप्रभसूरि ने पहले जाति या सादृश्य के आधार पर सामान्य की सत्ता को स्वीकार किया है और उसके पश्चात् बौद्धों के द्वारा सामान्य को काल्पनिक मानने की समीक्षा की है और यह बताया है कि जाति या सामान्य आकाश - पुष्प के समान नास्तिरूप नहीं है। 'यह गाय है, यह गाय है- इस प्रकार, के अनुगत - आकाररूप सामान्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । वस्तु में जो जातिगत गुण-धर्म है, वही सामान्य है और वह मात्र काल्पनिक नहीं है । वस्तु में जो सादृश्यता का बोध होता है, वह सामान्य के कारण ही होता है, अतः, सामान्य को काल्पनिक नहीं माना जा सकता। मनुष्यत्व गोत्व आदि मात्र काल्पनिक नहीं हैं। प्रस्तुत अध्याय में बौद्ध - दार्शनिकों ने वस्तु के क्षणिक होने के कारण जो सामान्य की सत्ता का निषेध किया, वह वस्तुतः उचित नहीं है । परिवर्तनों के मध्य भी एक ऐसा तत्त्व रहता है, जो उस जाति की सभी वस्तुओं में पाया जाता है। चाहे कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य से कितना ही भिन्न क्यों न हो, उनमें कहीं न कहीं आकारगत सादृश्यता होती ही है, अतः, सामान्य का न तो अन - अस्तित्व है और न वह काल्पनिक है ।
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इसी प्रकार, बौद्ध- दार्शनिक विशेष की सत्ता को स्वीकार करते हैं, किन्तु जैन- दार्शनिकों का कहना है कि सामान्य और विशेष - दोनों सापेक्ष हैं । वस्तु सामान्य - विशेषात्मक है। वस्तु में सामान्य और विशेष - दोनों प्रकार के गुणधर्म पाए जाते हैं। एक ही वर्ग की वस्तुओं में कुछ सादृश्य
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