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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा
प्रकार, मल्लिषेण ने स्याद्वादमंजरी नामक टीका-ग्रंथ में न केवल बौद्ध-दर्शन के क्षणिकवाद और उसके आनुषांगिक संततिवाद की समीक्षा की है, अपितु उसके विज्ञानवाद और शून्यवाद की भी समीक्षा की है। यद्यपि यहाँ यह ज्ञातव्य है कि बौद्धों का क्षणिकवाद एकान्त-क्षणिकवाद नहीं है, जैसा कि उसे मान लिया गया। यह सत्य है कि बौद्धों ने वस्तु की परिवर्तनशीलता के सिद्धांत को अधिक बल दिया है, उनका क्षणभंगवाद केवल वस्तु की प्रतिक्षण होने वाली परिवर्तनशीलता को द्योतित करता है, वास्तविकता यह है कि चाहे एकान्त-क्षणिकवाद हो या एकान्त-ध्रौव्यवाददोनों में ही कहीं न कहीं दूषण तो आता ही है। एकान्त-नित्यवाद में भी संसार के बंधन और मुक्ति की अवधारणाएं सिद्ध नहीं होती, इसलिए बौद्ध-दर्शन में सत्ता की परिवर्तनशीलता को स्वीकार करके बंधन और निर्वाण को सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है तथा संततिवाद के माध्यम से पूर्वजन्म की अवधारणा को प्रस्तुत भी किया गया है। फिर भी, मल्लिषेण ने यह प्रश्न उठाया है कि यदि आत्मा नामक कोई नित्य तत्त्व नहीं होगा, तो फिर पुनर्जन्म किसका माना जाएगा और इसी प्रसंग में मल्लिषेण ने अनात्मवाद की भी समीक्षा की। इस प्रकार, मल्लिषेण की स्याद्वादमंजरी में बौद्धों के क्षणिकवाद, संततिवाद और अनात्मवाद के साथ-साथ विज्ञानवाद, शून्यवाद, सामान्य काल्पनिकता आदि सिद्धांतों की समीक्षा उपलब्ध होती है। इस टीका ग्रंथ में अनेक स्थानों पर रत्नाकरावतारिका का अनुसरण देखा जाता है। अन्ययोगव्यवच्छेदिका के श्लोक क्रमांक 16 से 19 तक चार श्लोकों में बौद्धों के मंतव्यों की समीक्षा की गई थी। स्याद्वादमंजरी के इन्हीं चार श्लोकों की टीका में अति विस्तार से बौद्धमत के प्रायः सभी प्रमुख पक्षों की समीक्षा की गई है। 12. गुणरत्नकृत षड्दर्शनसमुच्चय की टीका में बौद्धदर्शन की समीक्षा
आचार्य हरिभद्र के षड्दर्शनसमुच्चय नामक मूल ग्रन्थ में बौद्ध-दर्शन के क्षणिकवाद, विज्ञानवाद, शून्यवाद आदि सिद्धांतों की समीक्षा उपलब्ध थी, किन्तु हरिभद्र की समीक्षा अत्यन्त ही उदारवादी थी। उन्होंने बौद्धों के क्षणिकवाद, विज्ञानवाद और शून्यवाद- इन तीनों पक्षों की समादरभाव के साथ समीक्षा की थी और यह बताया था कि भगवान बुद्ध ने शिष्यों की योग्यता और तृष्णा-प्राहाण की आवश्यकता- इन दो आधारों पर इन विविध सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया था। इस प्रकार, उन्होंने बौद्ध-दर्शन के इन सिद्धान्तों की कटु समीक्षा द्वारा मात्र यह दिखाने का
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