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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 37 प्रयत्न किया था, इनमें क्या कठिनाइयाँ आती हैं ? किन्तु उनके इस ग्रन्थ पर गुणरत्न ने जो विस्तृत टीका लिखी थी, उस टीका में सामान्य रूप से बौद्धों के क्षणिकवाद, अनात्मवाद, विज्ञानवाद, शून्यवाद, प्रमाण-सिद्धांत आदि सभी पक्षों की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत की थी। इस समीक्षा में गुणरत्न ने बौद्धों के पूर्वपक्ष का प्रतिपादन न्यायपूर्ण ढंग से किया है, किन्तु समीक्षा के क्षेत्र में वे मूल ग्रंथकार के समान उदारवादी नहीं रहे। उन्होंने बौद्धों के क्षणिकवाद, संततिवाद को एकान्त-क्षणिकवाद के रूप में तथा अनात्मवाद को आत्म-निषेधवाद के रूप में ग्रहण किया है। इसी प्रकार, विज्ञान को बाह्यार्थ-निषेधवाद के रूप में और क्षणिकवाद को सर्वोच्छवाद के रूप में गृहीत किया है। यद्यपि यह दृष्टिकोण बौद्ध-दर्शन के साथ पूर्ण न्याय नहीं करता है, फिर भी टीकाकार का मुख्य लक्ष्य तो अन्य दर्शनों की समीक्षा करके जैन-दर्शन की मान्यताओं को पुष्ट करना था और इसी दृष्टिकोण को लेकर गुणरत्न ने षड्दर्शनसमुच्चय पर अपनी विस्तृत टीका लिखी थी। उपसंहार - इस प्रकार, इस प्रथम अध्याय में मैंने सर्वप्रथम जैन-न्याय की विकास-यात्रा के विभिन्न चरणों की चर्चा करते हुए यह दिखाने का प्रयास किया है कि आगमयुग, जो जैन-न्याय के विकास का प्रथम चरण था, में सूत्रकृतांग में बौद्धों के क्षणिकवाद, पंचस्कन्धवाद आदि प्रारम्भिक सिद्धान्तों की ही चर्चा मिलती है, उनमें न तो बौद्धों के प्रमाणशास्त्र की कोई चर्चा है और न बौद्धों के विज्ञानवाद की ही कोई चर्चा है। ऋषिभाषित में बौद्धों के तीन ऋषियों यथा- वज्जीपुत्त, सातिपुत्त और महाकश्यप से सम्बन्धित तीन अध्यायों में भी बौद्धों के संततिवाद के अतिरिक्त किसी विशेष दार्शनिक-मत की चर्चा नहीं है। सूत्रकृतांग बौद्धों को सुखवादी और कर्म के मात्र मानसिक-पक्ष पर बल देने वाला बताता है; किन्तु उसके दार्शनिक-मतों की विशेष समीक्षा भी इस ग्रन्थ में नहीं है। बौद्ध-तत्त्वमीमांसा और ज्ञानमीमांसा की विशेष चर्चा हमें अनेकांतस्थापना-युग और प्रमाण-व्यवस्था-युग से मिलने लगती है। इन युगों में बौद्धों के विज्ञानवाद और शून्यवाद की विस्तृत समीक्षा तो मिलती ही है, साथ ही बौद्ध-प्रमाणशास्त्र सम्बन्धी मान्यताओं की भी विस्तृत समीक्षा मिलती है। इस युग के जैन-दार्शनिकों, यथा- सिद्धसेन, समंतभद्र, मल्लवादी, जिनभद्र, हरिभद्र, सिद्धर्षि, अकलंक, विद्यानन्दी, प्रभाचन्द, हेमचन्द्र, रत्नप्रभ, मल्लिषेण आदि ने बौद्ध-मन्तव्यों की विस्तृत समीक्षा की है। आगे, रत्नप्रभकृत रत्नाकरावतारिका को आधार बनाकर हमने बौद्धों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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