________________
362
रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा इन तीनों में सार्वत्रिक अप्रसिद्ध-साध्य वाले पक्ष को ही हम बौद्ध पक्षाभास कहते हैं। उदाहरणस्वरूप, सांख्यदर्शन समस्त पदार्थों को नित्य मानता है, उनके मत में विनाशत्व किसी भी धर्मी में प्रसिद्ध नहीं है, क्योंकि सांख्यदर्शन ने विनाश को पूर्वावस्था का तिरोभावमात्र ही कहा है, इसलिए विशेष रूप से सपक्ष में अप्रसिद्ध ऐसे विनाशत्व गुण वाले साध्य को सिद्ध करने में सांख्यदर्शन में पक्षाभास का दोष उत्पन्न हो सकता है- ऐसी हम बौद्धों की मान्यता है।
जैन आचार्य रत्नप्रभसरि की समीक्षा - बौद्धों के इस मंतव्य का खण्डन करते हुए रत्नप्रभसूरि कहते हैं कि आपका (बौद्धों का) उपर्युक्त कथन समीचीन नहीं है, क्योंकि सार्वत्रिक-अप्रसिद्धि को यदि अप्रसिद्ध विशेषणादि पक्षाभास कहेंगे, तो आपके सिद्धान्त में भी तो दोष आएगा, क्योंकि 'सर्व क्षणिकं सत्वात्', अर्थात् सभी पदार्थ सत्व होने से क्षणिक हैंऐसा आपका अनुमान-प्रमाण है और इस अनुमान-प्रमाण से आप सर्वत्र क्षणिकता की सिद्धि भी करते हैं, जबकि क्षणिकता कहीं पर भी प्रसिद्ध नहीं है और यदि क्षणिकता प्रसिद्ध हो, तो फिर उसको सिद्ध करने की भी कोई आवश्यकता ही नहीं रह जाती है। दूसरे, सभी वस्तुएँ पक्ष-रूप में स्थापित होने के कारण यह क्षणिकता किसी भी पक्ष में प्रसिद्ध नहीं है। इस प्रकार, से, सपक्ष में और विपक्ष में भी प्रसिद्ध न होने के कारण आपके अनुमान-प्रमाण में क्षणिकता की जो सिद्धि की जाती है, वह अप्रसिद्ध विशेषण- रूप ही होगी, जिसको मानने पर तो आपका अनुमान ही दूषित होगा और विशेष्य अर्थात् पक्ष (धर्मी) की प्रसिद्धि तो विकल्पमात्र से भी होती है- ऐसा प्रतिपादन पूर्व में हो चुका है, तो फिर यह विशेष्य की अप्रसिद्धि कैसे कहलाएगी ? क्योंकि विकल्प से तो विशेष्य की प्रसिद्धि हो सकती है।560
इस प्रकार, से, अप्रसिद्ध विशेषण और अप्रसिद्धि विशेष्य- ऐसे दोनों पक्ष खण्डित (असिद्ध) हो जाने से उभय-अप्रसिद्ध वाला तीसरा पक्ष भी अपने-आप ही खंडित हो जाता है।581
अनुमान में पक्ष, हेतु, दृष्टांत, उपनय और निगमन- ऐसे पाँच अंग होते हैं। यदि इन पाँचों में से किसी का भी विपरीत रूप में कथन किया
559 रत्नाकरावतारिका, भाग III, रत्नप्रभसूरि, पृ. 50 560 रत्नाकरावतारिका, भाग III, रत्नप्रभसूरि, पृ. 51 561 रत्नाकरावतारिका, भाग III, रत्नप्रभसूरि, पृ. 51
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org