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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
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अर्थात् ज्ञान के विषयरूप पदार्थ की सत्ता किसी भी प्रकार से सिद्ध नहीं होती है।
पुनः, शून्यवादी जैनों से यह प्रश्न करते हैं कि- 1. संयोग नामक वैशिष्ट्य समग्र परमाणु में रहता है ? या 2. परमाणु के एक भाग में रहता है ? 1. यदि सम्पूर्ण परमाणु में रहता है- ऐसा मानें, तो परमाणुओं का पिंड मात्र अणुरूप ही हो जाएगा। 2. यदि संयोग एक देश से मानें, तो एक परमाणु के साथ एक साथ ही छ: परमाणुओं का संयोग-संबंध होने से परमाणुओं के छ: अंशों की, अर्थात् छ: भागों की कल्पना करना पड़ेगी, अर्थात् परमाणु के छ: भाग हो जाएंगे, अन्ततः परमाणु ही समाप्त हो जाएगा, क्योंकि जिसमें विभाग हो, वह परमाणु हो ही नहीं सकता है, इसलिए परमाणु में संयोग-गुण हो ही नहीं सकता है। संयोग-शक्ति (संयोग-गुण) का अभाव हो जाने पर सभी प्रकार का वैशिष्ट्य समाप्त हो जाएगा, परिणामस्वरूप, पदार्थ ज्ञान का विषय नहीं बन सकता है- इससे तो शून्यवाद का सिद्धांत सत्य सिद्ध होता है।23।
पुनः, शून्यवादी यह तर्क देते हैं कि स्थल अवयवी 1. आधाररहित है? या 2. आधारयुक्त है ? यदि स्थूल पदार्थ को आधाररहित मानेंगे, तो प्रत्यक्ष से बाधा होगी, क्योंकि पदार्थ तो आधारयुक्त होता है, बिना आधार के कोई पदार्थ होता नहीं है। दूसरे, यदि पदार्थ को आधारयुक्त मानेंगे, तो प्रश्न उत्पन्न होगा कि वह आधार- 1. एक अवयव से युक्त है ? या 2. अनेक अवयवों से युक्त है ? प्रथम पक्ष, अर्थात् एक अवयवी का आधार तो संभव नहीं है, क्योंकि 'अनेक अवयवों में एक अवयवी' की संभावना तो होती है, किन्तु एक अवयवी में अनेक अवयवों की संभावना नहीं हो सकती। यदि दूसरा पक्ष, अनेक अवयवों का आधार मानें, तो प्रश्न उठेगा कि 1. अविरोधी अनेक अवयव आधार बनेंगे? या 2. विरोधी अनेक अवयव आधार बनेंगे ? प्रथम पक्ष तो उचित नहीं है, क्योंकि चल-अचल, स्थूल-अस्थूल, नील-अनील आदि ये एक-दूसरे के परस्पर विरोधी हैं, अतः, अनेक अवयवों के परस्पर विरोधी होने से यह पक्ष युक्तिसंगत नहीं है। दूसरा पक्ष यह है कि अवयवी में विरुद्ध धमी का आश्रय स्वीकार करने से स्थूल अवयवी एक जैसे सिद्ध नहीं होंगे। 24
5n रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 84 525 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 84, 85 524 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 85
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