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________________ 340 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा विशेषता (अतिशय) चाहिए, दूसरे अतिशय की उत्पत्ति में तीसरे अतिशय की आवश्यकता होगी। इस प्रकार, से तो अनवस्था-दोष की प्राप्ति होगी। यदि स्थूल पदार्थरूप कार्य की उत्पत्ति में परमाणुओं को संयोजित करने रूप जो अतिशय अर्थात् वैशिष्ट्य--हेतु है, वह 1. परमाणुओं के स्वभावरूप है ? या 2. परमाणुओं से भिन्न है ? यदि परमाणु अपने स्वाभाविक रूप से ही पदार्थ में परमाणु-रूप से रहता है, अर्थात् परमाणु किसी अन्य के संयोग से पदार्थ की उत्पत्ति नहीं करता है, तो फिर उस परमाणु से पदार्थ की उत्पत्तिरूप कार्य होगा ही नहीं। दूसरे, स्थूल पदार्थ की उत्पत्ति में यदि संयोग नामक अतिशय (वैशिष्ट्य या गुण) को परमाणु से भिन्न मानें, तो प्रश्न उठता है कि वह- 1. सर्वथा भिन्न है या 2. कथंचित्-भिन्न है ? यदि कथंचित्-भिन्न कहें, तो इसका अर्थ हुआ कि कथंचित-भिन्न है, या कथंचित्-अभिन्न है, किन्तु यह पक्ष तो विरोध से बाधित हो जाता है। सर्वथा भिन्न कहें, तो परमाणु का संयोगातिशय अर्थात् संयोग नामक गुण परमाणु से 1. सम्बद्ध है ? या 2. असम्बद्ध है ? असंबद्ध मानें, तो "परमाणुओं का यह संयोग है"- ऐसा नहीं कह सकते। यदि सम्बद्ध मानें, तो वह संयोगातिशय- 1. संयोग-संबंध या 2. समवाय-संबंध या 3. तादात्म्य-संबंध या 4. तदुत्पत्ति-संबंध या 5. अविष्वगभाव-संबंधऐसे ज्ञान के पाँच संबंधों में से कौनसे संबंध से संबद्ध है ? 1. संयोग-संबंध से संबद्ध नहीं कह सकते, क्योंकि 'गुण में गुण तो होता नहीं है, अर्थात् एक गुण में दूसरा गुण संयोगरूप से भी नहीं रहता है। 2. समवाय-संबंध भी नहीं हो सकता, क्योंकि सब परमाणुओं में समवाय एक ही होने से जिस समय एक पदार्थ में एक संयोग-संबंध कराता है, उसी समय दूसरा संयोग-संबंध कैसे हो सकता है ? - 3. परमाणु में संयोगातिशय, अर्थात् संयोग नामक गुण सर्वथा भिन्न रूप से रहता है, यदि ऐसा भेद किया जाए, तो उसमें तादात्म्य-संबंध अर्थात् अभेद भी नहीं कहा जा सकता। 4. परमाणुओं से संयोग की उत्पत्ति होती हो- ऐसा तदुत्पत्ति-संबंध भी खंडित हो जाता है। 5. अविष्वग्भाव-संबंध भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें 'कथंचित्' शब्द का प्रयोग होने से इसमें उभय संबंध अर्थात् तादात्म्य-संबंध और तदुत्पत्ति-संबंध- दोनों को मानने से विरोध उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार से, शून्यवादी कहते हैं कि 'पर' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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