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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
हैं, वह एक देश कहलाता है. परन्तु सम्पूर्ण पृथ्वीमण्डल को एक देश नहीं
कहा जा सकता 1520
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बौद्ध इस पर, बोद्ध - दार्शनिक कहते हैं कि ऐसा मानने पर तो इतरेतराश्रय- दोष आ जाएगा, क्योंकि कार्य की सिद्धि होने के बाद एक देश की सिद्धि होगी, अथवा एक देश की सिद्धि होने के बाद कार्य की सिद्धि होगी। 2. यदि आप (जैन) परमाणुओं के संयोग से ही स्थूल पदार्थ की उत्पत्ति मानें, तो वह संयोग - 1. नित्य है या 2. अनित्य है ? यदि आप संयोग को नित्य मनेंगे, तो नित्य-संयोग से तो हमेशा कार्योत्पत्ति का प्रसंग आएगा, क्योंकि अनेक परमाणुओं के संयोग से ही पदार्थ स्कन्ध-रूप में निर्मित होता है। यदि आप संयोग को अनित्य (क्षणिक) मानेंगे, तो फिर पदार्थ का निर्माण किससे हुआ? पदार्थ किसी अन्य पदार्थ के संयोग से उत्पन्न होता है, या फिर परमाणु के संयोग से ही उत्पन्न होता है ? यदि ऐसा कहा जाए कि पदार्थ की रचना किसी अन्य पदार्थ से होती है, तो फिर प्रश्न यह होगा कि वह अन्य पदार्थ किससे उत्पन्न हुआ और इस प्रकार, अनवस्था - दोष की स्थिति बन जाएगी। यदि ऐसा कहते हो कि संयोगरूप स्कन्ध-विशेष किसी अन्य पदार्थ से उत्पन्न होता है, तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने से तो संयोग का आधार परमाणु नहीं बन सकता, अर्थात् घट में रहे हुए रूप आदि की उत्पत्ति में केवल चाक, डंडा, कुम्हार, अग्नि आदि ही निमित्त कारण नहीं बनते, अपितु घट स्वयं भी घटरूप बनने में उपादान -- कारण होता है। इसी प्रकार तो परमाणु में रही हुई संयोगरूपी विशेषता (अतिशय ) में भी परमाणु भी स्वयं उपादान - कारण होगा। दूसरा प्रश्न यह है कि क्या संयोगरूपी विशेषता (अतिशय ) की उत्पत्ति में 1. निरतिशय ( अलग-अलग रहे हुए) परमाणु कार्य करते हैं ? या 2. सातिशय ( स्कन्धरूप में रहे हुए) परमाणु कार्य करते हैं ? 1. यदि निरतिशय, अर्थात् अलग-अलग रहे हुए परमाणुओं को कार्य का कर्त्ता माना जाए, तो इससे निरंतर कार्योत्पत्तिरूप दोष उत्पन्न हो जाएगा । यदि संयोग की विशेषतायुक्त सातिशय, अर्थात् संगठित परमाणुओं को कार्य करने वाला माना जाए, तो फिर तो एक विशेषता (अतिशय) की उत्पत्ति में दूसरी
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520 रत्नाकरावतारिका, भाग I रत्नप्रभसूरि, पृ. 83 521 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 83
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