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________________ 338 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा पदार्थ को अणरूप मानते हैं ? या स्थूलरूप मानते हैं ? पुनः, यदि स्थूलरूप मानते हैं, तो वे स्थूल पदार्थ- 1. नित्य हैं ? या 2. अनित्य हैं ? पुनः, यदि आप ज्ञेय पदार्थ को नित्य मानते हैं, तो जिस प्रकार नित्य-परमाणु अर्थक्रिया करने में समर्थ नहीं होता, उसी प्रकार नित्य स्थूल पदार्थ भी नित्य होने के कारण अर्थक्रिया करने में असमर्थ होगा। इस प्रकार, प्रथम पक्ष भी खण्डित हो जाता है। यदि स्थूल पदार्थ को अनित्य मानते हैं, तो यह बताइए कि स्थूल पदार्थ की उत्पत्ति में- 1. स्थूल पदार्थ कारण बनता है ? या 2 परमाणु कारण बनता है ? अत्यन्त स्थूल पदार्थ तो कारण नहीं हो सकता है, क्योंकि वह अत्यन्त स्थूल पदार्थ तो विश्व को व्याप्त करेगा। ऐसा स्थूलाद्वैतवाद तो निरर्थक है, क्योंकि स्थूल का अर्थ सूक्ष्म के बिना सम्भव नहीं है। सूक्ष्म की अपेक्षा ही किसी स्थूल की सिद्धि होती है, जैसे- चने की अपेक्षा बैर बड़ा होता है। यदि यह कहें कि सूक्ष्म परमाणु कारण बनता है, तो यह भी उचित नहीं हैं, क्योंकि ऐसा मानने पर पदार्थ सम्भवतः उभयरूप होगा, क्योंकि पदार्थ कारण की अपेक्षा सूक्ष्म होगा और कार्य की अपेक्षा स्थूल। पुनः, प्रश्न उत्पन्न होता है कि एक-एक परमाणु स्थूल पदार्थ को उत्पन्न करता है, या बहुत सारे परमाणु स्थूल पदार्थ को उत्पन्न करते हैं? पहला तर्क मानते हैं, तो स्वर्ग, मृत्युलोक और पाताललोक- इन तीनों लोकों की गुफाओं में ठसाठस भरे हुए एक-एक परमाणु से भी हमेशा स्थूल कार्य (स्थूल पदार्थ) के उत्पन्न होने का प्रसंग उत्पन्न होगा, जो उचित नहीं है। यदि दूसरा तर्क कि अनेक परमाणु स्थूल पदार्थ को उत्पन्न करते हैं, तो समूह (स्कन्ध) में रहते हुए वे कौनसे परमाणु माने जाएंगे, जो स्थूल पदार्थ को उत्पन्न करते हैं ? क्या- 1. एक देश में रहने वाले ? या 2. संयोग रूप से रहने वाले ? या 3. क्रियारूप में रहे हुए परमाणु स्थूल पदार्थ को उत्पन्न करते हैं ? यदि एक देश (भाग) में स्थित परमाणु से स्थूल पदार्थ की उत्पत्ति मानें, तो पृथ्वी के किसी एक देश (भाग) में, अर्थात् पृथ्वी के किसी भी एक स्थान पर रहने वाले परमाणुओं से एक ही स्थूल पदार्थ के उत्पादन का प्रसंग आ जाएगा, क्योंकि सम्पूर्ण पृथ्वी भी विश्व के एक देश-रूप ही तो है। 19 - जैन - बौद्धों के इस कथन पर जैनों द्वारा यह स्पष्टीकरण किया गया है कि देश में रहने वाले जितने परमाणु एक कार्य को उत्पन्न करते 519 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 82, 83 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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