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________________ 332 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा माध्यमिक-सम्प्रदाय घट आदि बाह्य-पदार्थों को और ज्ञानरूप आन्तरिक-पदार्थों को मिथ्या मानता है। शून्यवादियों के अनुसार, यह समस्त जगत् प्रपंचरूप अर्थात् मिथ्या है। वास्तव में कोई भी पदार्थ सत् नहीं है। अनादिकालीन मिथ्या संस्कार के कारण हमें पदार्थ की प्रतीति होती है, अतः, पदार्थ की (पर की) त्रैकालिक वास्तविक सत्ता नहीं है।" यहाँ शून्यवादी अपने पूर्वपक्ष की सिद्धि हेतु जैन-दार्शनिक से यह प्रश्न करते हैं कि आप यदि पर की सत्ता को स्वीकार करते हैं, तो वह पर (पदार्थ) क्या है ? आप सर्वप्रथम यह सिद्ध करें कि पर (पदार्थ)- 1. अणुरूप है ? या 2. स्थूलरूप है? या 3. अणु और स्थूलरूप, अर्थात् उभयरूप है ? या 4. अनुभयरूप है ? शून्यवादी आचार्य रत्नप्रभसूरि से प्रश्न करते हैं कि आपके सिद्धांतानुसार यदि पदार्थ अणुरूप है, तो उस पदार्थ का ज्ञान हमें- 1. प्रत्यक्ष से होता है ? या 2. अनुमान से होता है ? यदि आप यह तर्क देते हैं कि पदार्थ का ज्ञान प्रत्यक्ष से होता है, तो वह पदार्थ का प्रत्यक्ष-ज्ञान- 1. योगज-प्रत्यक्ष से होता है ? या 2. स्वयं के ऐन्द्रिक-प्रत्यक्ष से होता है ? यदि योगज-प्रत्यक्ष के आधार पर यह मानते हैं कि पदार्थ अणुरूप है, तो इसका अर्थ यह हुआ कि आपको अतीन्द्रिय-ज्ञान से उसके अणुरूप होने का प्रत्यक्ष-बोध हुआ है, किन्तु शून्यवादियों का यह प्रश्न है कि इसको आपने (जैनों ने) कैसे जाना? आपमें तो अतीन्द्रिय-ज्ञान नहीं है। आप तो मात्र श्रद्धा के कारण ऐसा कहते हैं कि योगज-प्रत्यक्ष से अणुरूप पदार्थ का ज्ञान होता है। यदि आप यह कहें कि स्वयं के प्रत्यक्ष से पदार्थ के अणुरूप होने का ज्ञान होता है, किन्तु यह बात तो अनुभव से ही खण्डित हो जाती है, क्योंकि अणु का कोई भी अनुभव होता ही नहीं है। अणु तो इतना सूक्ष्म होता है कि हम अपनी इन्द्रियों से उसका प्रत्यक्ष ज्ञान कर ही नहीं सकते हैं। आपके (जैनों के) अनुसार भी परमाणु को केवली के अतिरिक्त कोई भी नहीं देख सकता है। स्वप्न में भी अणु का प्रत्यक्ष ज्ञान संभव नहीं होता है। ज्ञान तो इसी रूप में होता है कि यह स्तंभ है या यह कुंभ (घट) है, या यह पट है आदि, अतः, प्रत्यक्ष प्रमाण से 'यह अणु है- ऐसा ज्ञान नहीं हो सकता है। पुनः, यदि आप जैन यह मानते हैं कि अणुरूप पदार्थ का ज्ञान अनुमान से होता है, तो इस अनुमान से संबंधित दो प्रश्न उत्पन्न होते हैं- 1. क्या साध्य-साधक संबंध के आधार पर अनुमान से अणु का ज्ञान होता है ? या 2. साध्य-साधक के संबंध के बिना ही अनुमान से अणु का ज्ञान हो जाता 511 देखें - प्रमाणनयतत्त्वालोक, वादीदेवसूरि, पृ. 8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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