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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 327 जैन - इस पर, जैनों का कहना है कि आपने जो तीन प्रकार के हेतु बताए हैं, वे हेतु किसमें रहते हैं ? वस्तुतः, जहाँ साध्य की सिद्धि करना हो, वहीं तो हेत रहेगा और यदि वहाँ नहीं होगा, तो वहाँ साध्य की सिद्धि भी नहीं होगी। दूसरे, यदि आप बौद्ध-पक्ष की आवश्यकता को स्वीकार नहीं करेंगे, तो हेतु का विधान या निषेध पक्ष के अभाव में किससे करेंगे ? अतः, तीनों प्रकार के हेतुओं में कौनसा हेतु कहाँ स्थित है, इसके लिए तो पक्ष बताना ही पड़ेगा ? पक्ष प्रयोग किए बिना, मात्र विवाद (चर्चा) से ही पक्ष स्पष्ट नहीं हो पाता है। 02 पुनः, जैन कहते हैं कि यदि आप यह कहते हैं कि पक्ष तो हेतुकथन से समझ में आ जाता है, तो फिर इसी प्रकार हेतु को भी कथन से ही समझ में आ जाना चाहिए। बिना हेतु के भी साध्य की सिद्धि हो जाना चाहिए।503 बौद्ध - इस पर, बौद्ध कहते हैं कि यद्यपि यह ठीक है कि अति बुद्धिशाली श्रोता को हेतु भी कथन से ही समझ में आ जाता है, उसे हेत को बताने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है। हम तो हेतु कथन भी मंदमति वालों के लिए ही करते हैं। जैन - इस चर्चा के अंत में, जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि बौद्धों से कहते हैं कि जिस प्रकार आप मंदबुद्धि वालों के लिए हेतु का प्रयोग आवश्यक मानते हैं, उसी प्रकार हम भी पक्ष का प्रयोग मंदबुद्धि वालों के लिए ही करते हैं, अतः, आप बौद्धों को परार्थानुमान में हेतु के समान ही पक्ष के प्रयोग को भी अवश्य स्वीकार कर लेना चाहिए। अनुमान में पक्ष की अनावश्यकता संबंधी बौद्ध-मंतव्य की समीक्षा (अ) भारतीय-दर्शन में अनुमान के अवयव भारतीय-दर्शन में चार्वाक दर्शन को छोड़कर सभी दर्शनों में अनुमान को प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया है। सामान्यतया, न्याय-दर्शन में अनुमान के पाँच अवयव या अंग माने हैं, ये निम्न हैं- 1. प्रतिज्ञा या साध्य 2. हेतु 3. दृष्टांत 4. उपनय और 5. निगमन, किन्तु जब 502 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 439 503 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 440 504 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 440 505 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 440 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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