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________________ 321 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा जैन कहते हैं कि यदि कदाचित् आप बौद्ध-दार्शनिक 'विकल्पसिद्ध धर्मी नहीं हैं- ऐसा सिद्ध करने के लिए भी अनुमान करते हैं, तो उस अनुमान में. उसको पक्ष-रूप में छोड़ नहीं सकते और यदि छोड़ते हैं, तो उसका खंडन कैसे करते हैं ?105 पुनः, यदि बौद्ध यह कहते हैं कि हम बौद्ध तो विकल्पसिद्ध धर्मी को मानते तो नहीं हैं, किंतु जैनों द्वारा मान्य होने से उसका खण्डन करते हैं।188 जैन - इस पर, जैन-दार्शनिक कहते हैं कि धर्मी (पक्ष) में धर्म (साध्य) की सिद्धि अनुमान से ही तो होती है। इसके प्रत्युत्तर में, बौद्ध यह कह सकते हैं कि धर्मी (पक्ष) तो प्रत्यक्ष का विषय होता है, पर्वत और धूमदोनों दिखाई देंगे, तो ही पर्वत पर अग्नि की सिद्धि होगी, अतः, पक्ष को तो प्रत्यक्ष से ही मानना पड़ेगा। यदि पक्ष (पर्वत) को विकल्प (कल्पना) से मानेंगे, तो फिर पूरा अनुमान ही काल्पनिक हो जाएगा। जैनों का कहना है कि यदि आप बौद्ध धर्मी (पक्ष) को विकल्पसिद्ध मानते हैं, तो हमारा खण्डन कैसे करते हैं? और यदि आप बौद्ध-दार्शनिक यह कहते हैं कि धर्मी (पक्ष) विकल्पसिद्ध नहीं है, तो फिर सर्वज्ञ को अनुमान से कैसे सिद्ध करेंगे ? चाहे जगत् में सर्वज्ञ हों या न हों, चाहे उसका विधान करना हो या निषेध करना हो- दोनों में विकल्पमात्र से धर्मी (पक्ष) की कल्पना करके ही उसके विधि-निषेध के लिए अनुमान होगा। यदि सर्वज्ञ की सिद्धि या खण्डन करना हो, किन्तु सर्वज्ञ का अस्तित्व या नास्तित्व प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम-- इन तीनों प्रमाणों में किसी से भी सिद्ध नहीं हो सकता है, उसको विकल्प (मानसिक-कल्पना) से ही मानना होगा। सर्वज्ञ का अस्तित्व या नास्तित्व, कुछ भी प्रत्यक्षादि प्रमाणों से सिद्ध नहीं हो सकता है, इसलिए यह मानना होगा कि सर्वज्ञ विकल्पसिद्ध धर्मी है।87 इसके विपरीत, प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम आदि किसी भी अन्य प्रमाण से, जिसके अस्तित्व या नास्तित्व का निश्चय हो गया हो, वह प्रमाणसिद्ध धर्मी कहलाता है, जैसे- 'यह पर्वत वह्निमान है। 486 485 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 434 486 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 434 437 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 434 188 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 434 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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