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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा रत्नप्रभसूर द्वारा प्रस्तुत बौद्धों का पूर्वपक्ष और उसकी समीक्षा ग्रन्थकार जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि पक्ष (धर्मी) की सिद्धि को दृष्टांत द्वारा निम्न तीन प्रकार से समझाते हैं 478 1. सर्वप्रथम पक्ष (धर्मी) का ज्ञान विकल्प से होता है, जैसे 'इस संसार में समस्त वस्तुओं को जानने वाले किसी सर्वज्ञ पुरुष का अस्तित्व है।' इस अनुमान में 'समस्त' हेतु के प्रयोग से सर्वज्ञ के 'अस्तित्व को सिद्ध करना है, किंतु वर्त्तमान में सर्वज्ञ के अस्तित्व की सिद्धि चाक्षुष - ज्ञान का विषय नहीं बन सकती है, इसलिए मात्र विकल्प (मानसिक - कल्पना) से ही सर्वज्ञ की सिद्धि संभव हो सकती है। जिस समय धूम हेतु का प्रयोग करते समय अग्नि साध्यमान् होने से भले ही वह अग्नि चाहे चक्षु का विषय न बने, अर्थात् प्रत्यक्ष प्रमाण से अग्नि सिद्ध न हो, किंतु फिर भी जिसमें अग्नि को सिद्ध करना है तथा जिसमें धूम को देखा है, वह पर्वत (धर्मी) तो प्रत्यक्षरूप से सिद्ध ही है, किन्तु सर्वज्ञ की सिद्धि में ऐसा संभव न होने से, सर्वज्ञ की सिद्धि मात्र विकल्प से ही होती है, प्रत्यक्ष, आगम आदि किसी भी अन्य प्रमाण से सर्वज्ञ की सिद्धि संभव नहीं है। 179 दूसरे प्रकार से, धर्मी का ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण से होता है, यथायह पर्वत का शिखर (पक्ष) अग्नि वाला है, क्योंकि वहाँ धूम दिखाई दे रहा है । इस अनुमान में 'पर्वत' नाम का जो धर्मी (पक्ष) है, वह चाक्षुष - प्रत्यक्ष से ग्राह्य होने से यहाँ विकल्प (कल्पना) की कोई आवश्यकता ही नहीं है। 80 478 'रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 431 479 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 432 480 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 432 319 - इसी प्रकार अन्य तीसरे अनुमान में 'धर्मी (पक्ष) का ज्ञान प्रत्यक्ष और विकल्प - उभय से होता है । वक्ता के द्वारा उच्चारित शब्द श्रोता के द्वारा श्रवणीय होने से श्रोता संबंधी ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण से होता है, किंतु जिन शब्दों को भूतकाल में बोला जा चुका है तथा जो शब्द दूर व्यवधान वाले स्थान में वर्त्तमान में बोले जा रहे हैं, वे शब्द हमारे लिए श्रोत्र ग्राह्य नहीं होने के कारण वे शब्द प्रत्यक्ष आदि प्रमाण से बोधक न होने से विकल्प - मात्र से ही बोधक बन सकते हैं, अतएव श्रूयमान शब्द प्रत्यक्ष प्रमाण से और शेष शब्द विकल्प से जाने जाते हैं, अर्थात् शब्दरूप धर्मी (पक्ष) का ज्ञान अंशतः विकल्प से और अंशतः प्रत्यक्ष प्रमाण से ऐसे उभय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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