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________________ 318 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा अध्याय-12 अनुमान में पक्ष की आवश्यकता के संबंध में बौद्धमत की समीक्षा जैनों द्वारा प्रस्तुत बौद्धों का पूर्वपक्ष - ज्ञातव्य है कि अनुमान में जहाँ बौद्ध पक्ष को अनावश्यक मानते हैं, वहीं जैन 'पक्ष को आवश्यक मानते हैं। जैन-दार्शनिकों के अनुसार, धुएँ से अग्नि की सिद्धि के लिए पर्वत या रसोईघर का होना आवश्यक नहीं है। इस संबंध में जैन सर्वप्रथम यह प्रश्न उठाते हैं कि धर्मी का ज्ञान कैसे होता है? जैन-दार्शनिकों का मानना है कि ज्ञान हेतु सर्वप्रथम तो जिज्ञासा का होना आवश्यक है। धर्मी के ज्ञान-संबंध में जैनों का कहना है कि धर्मी का ज्ञान कभी विकल्प से होता है, कभी प्रमाण से होता है तथा कभी विकल्प और प्रमाण-उभय से होता है। यहाँ सर्वप्रथम यह बताते हैं कि विकल्प क्या है ? विकल्प मात्र मन का अध्यवसाय या मानसिक-संकल्पना है। विकल्प में पदार्थ के नहीं होने पर भी पदार्थ की मानसिक-कल्पना करके उसका प्रस्तुतिकरण किया जाता है, यही विकल्प है। जब हम यह अनुमान करते हैं कि 'पर्वतो वह्निमान् धूमात्, तो इसमें पर्वतरूपी धर्मी चाक्षुषादि प्रत्यक्ष से ग्राह्य होता है, अर्थात् पर्वत चक्षु आदि से प्रत्यक्ष का विषय बनता है। इस प्रकार, यहाँ प्रमाण से धर्मी (पर्वत) की सिद्धि होती है, किन्तु जब पर्वतरूपी धर्मी चक्षु आदि से प्रत्यक्ष प्रमाण का विषय नहीं बनता है, तब मानसिक-कल्पना से भी साध्य की सिद्धि करने के लिए पक्ष को प्रस्तुत करना ही पड़ता है, अतः, वह पक्ष विकल्प से प्रसिद्ध धर्मी कहलाता है, यथा- किसी अनुमान के द्वारा सर्वज्ञ पुरुष का अस्तित्व सिद्ध किया जाता है। यद्यपि प्रत्यक्ष में सर्वज्ञ-पुरुष नहीं है, फिर भी मानसिक-कल्पना (विकल्प) से सर्वज्ञ को सिद्ध किया जाता है।" 477 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 431 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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