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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 313 कि धूमात्मक कार्य उसी देश में अग्नि के साथ में अन्यथानुपपत्ति वाला है और जल-चंद्र चाहे आकाश के चंद्र से दूर हो, फिर भी आकाश-चंद्र के साथ अन्यथानुपपत्ति वाला है। इस प्रकार, दोनों में ही 'निश्चितान्यथानुपपत्ति का निर्णय हो जाने से साध्य की सिद्धि हो जाती है। जल-चंद्र और नभ-चंद्र के मध्य क्षेत्रगत दूरी के लिए आकाश की पक्ष-धर्मता को मानने की कोई आवश्यकता ही नहीं है, अतः, हेतु का लक्षण तो निश्चित-अन्यथानुपपत्ति ही होता है। इस प्रकार, जैन कहते हैं कि बौद्ध एवं न्याय–दार्शनिकों द्वारा पक्षधर्मता को हेतु का लक्षण मानना निरर्थक है। बौद्धों ने पक्षधर्मत्व के अतिरिक्त सपक्षसत्व और विपक्षअसत्व- ऐसे हेतु के दो लक्षण और मानें हैं। इन लक्षणों की निरर्थकता बताते हुए जैन-दार्शनिक कहते हैं कि हमने निश्चित-अन्यथानुपपत्ति वाला हेतु का जो लक्षण बताया है, वह सार्वदेशिक और त्रिकालिक है, इसलिए वह सपक्ष में भी लागू होता है। बौद्ध-दार्शनिक जब ‘सर्व क्षणिकम् सत्वात्- ऐसा सत्-रूप हेतु के आधार पर जो अनुमान करते हैं, तो उनका यह अनुमान भी अन्यथानुपपत्तिरूप ही तो है। चूंकि सर्व शब्द का प्रयोग करने पर सर्व को पक्ष होने के कारण उसके अतिरिक्त या उससे भिन्न कोई अन्य सपक्ष नहीं हो सकता, इसलिए सपक्षसत्व और विपक्ष-असत्वरूप दृष्टांत की कोई आवश्यकता ही नहीं रहती है। सर्वं क्षणिकम् सत्वात्- इस अनुमान में सपक्षसत्व और विपक्षअसत्व-लक्षण की कहाँ सिद्धि होती है, अतः, आप बौद्धों को सपक्षसत्व नामक हेतु-लक्षण का त्याग करके निश्चित-अन्यथानुपपत्ति- ऐसा एकमात्र हेतु-लक्षण स्वीकार कर लेना चाहिए। बौद्ध - इस पर, बौद्ध-दार्शनिक कहते हैं कि जो साध्य धर्मवाला होता है, वही सपक्ष कहलाता है। इस पर, जैन-दार्शनिक कहते हैं कि यदि आपके अनुसार सपक्ष और पक्ष- इन दोनों से कोई विरोध नहीं है, तो फिर जिस प्रकार पक्षधर्मत्व-लक्षण निरर्थक सिद्ध होता है, उसी प्रकार सपक्षसत्व-लक्षण भी निरर्थक ही सिद्ध होगा, क्योंकि जो साध्य धर्म पक्ष में है, वही साध्य-धर्म सपक्ष में भी है। सपक्ष में भी हेतु का सद्भाव होता है और विपक्ष में हेतु का अभाव होता है, इसी प्रकार पक्ष में भी हेतु का 466 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 422 467 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 424 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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