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________________ 308 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि कहते हैं कि आप बौद्धों एवं नैयायिकों के हेतु-लक्षण में अतिव्याप्ति-दोष आता है। अन्य दार्शनिक-परम्पराओं में इस प्रकार, का एक अनुभव प्रसिद्ध है। 'मित्रा' नाम की एक स्त्री थी। उसके कुल आठ पुत्र थे, जिनमें से सात पुत्र श्याम वर्ण के और आठवाँ पत्र गौर-वर्ण था, किन्तु फिर भी आठवें पुत्र को उद्देश्य करके ही यह अनुमान किया जाता कि यह आठवाँ पुत्र भी मित्रा का पुत्र है। चूंकि मित्रा के सात पुत्र श्याम वर्ण हैं, अतः, मित्रा का यह आठवाँ पुत्र भी श्याम वर्ण है। चूंकि उसके अन्य सात पुत्र श्याम वर्ण के देखे गए हैं, अतः, मित्रा का पुत्र होने से उसका आठवाँ पुत्र उसके अन्य पुत्रों के समान ही श्याम वर्ण का होना चाहिए। डॉ. धर्मचन्द जैन 'बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैन-दृष्टि से समीक्षा नामक पुस्तक में लिखते हैं- 'यह हेतु त्रिलक्षणयुक्त होकर भी साध्य का निश्चय नहीं करा पाता है, अतः, अविनाभाव नामक लक्षण के अभाव में त्रिरूपता निरर्थक है। 454 रत्नाकरावतारिका में रत्नप्रभसूरि सर्वप्रथम उपर्युक्त उदाहरण में नैयायिकों द्वारा मान्य हेतु के पाँच लक्षणों के होने की पुष्टि करते हुए कहते हैं- 1. तत्पुत्रत्व (मित्रा के अन्य पुत्रों के समान) श्यामवर्ण आठवें पुत्र में है- यह पक्षधर्मता है। 2. प्रथम सात पुत्र श्याम वर्ण के होने से सातों पुत्र साध्य-विशिष्ट हैं, इसलिए वह सपक्षसत्व कहलाता है। इसमें तत्पुत्रत्व है, (सातों पुत्र हेतु हैं), इसलिए इसमें सपक्षसत्व भी है। 3. जिसमें श्यामत्व नहीं हो- ऐसा साध्याभाव से युक्त जो रक्तघट, श्वेत पट इत्यादि हैं, वह विपक्ष है, वहाँ पर तत्पुत्रत्व हेतु नहीं है, इसलिए इसमें विपक्षासत्व भी है। यद्यपि यहाँ विपक्ष में भी हेतुसत्व हो सकता है, अर्थात् मित्रा के अलावा किसी अन्य को भी तो पत्र हो सकते हैं और वह काला भी हो सकता है। 4. अतः, उपर्युक्त अनुमान में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं होने से अबाधित विषयत्व है। 5. यहाँ श्यामत्व के अभाव को सिद्ध करने के लिए अन्य प्रतिस्पर्धी हेतु नहीं होने से असत्-प्रतिपक्षत्व भी है। इन पाँचों-लक्षणों के होते हुए भी हेतु सद्हेतु नहीं है, अतः, इस अनुमान में 453 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 417 45* देखें - बौद्ध प्रमाण-मीमांसा की जैन-दृष्टि से समीक्षा, डॉ. धर्मचन्द जना, पृ. 225 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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