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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा भारतीय-दर्शन में 'न्याय - दर्शन के विशिष्ट विद्वान् पं. बलदेव उपाध्याय लिखते हैं- हेतु के द्वारा ही अनुमान की सिद्धि होती है, अतः, हेतु की निर्दोषता के विषय में नैयायिकों का विशेष आग्रह रहता है। हेतु निम्न पाँच लक्षणों से युक्त होने पर ही सद्हेतु कहा जाता है 1. पक्षेसत्ता (हेतु का पक्ष में रहना) 2. सपक्षेसत्ता (हेतु का सपक्ष में विद्यमान होना) 3. विपक्षाद् - व्यावृत्ति (हेतु का पक्ष से विपरीत विपक्ष के दृष्टान्तों में, यथा- कूप, जलाशय आदि में नहीं होना) 4. असत्प्रतिपक्षत्वम् ( साध्य से भिन्न प्रतिपक्ष में साध्य की सिद्धि के लिए अन्य हेतु का अभाव होना) 5. अबाधितविषयत्व (हेतु का प्रत्यक्षादि प्रमाणों द्वारा बाधित न होना) । अनुमान की सत्यता हेतु के इन लक्षणों पर अवलम्बित रहती है। यदि इन लक्षणों में से किसी भी एक में त्रुटि लक्षित होती है, तब वह हेतु सद्हेतु न होकर हेतु का आभासमात्र होता है। आपाततः हेतु में निर्दुष्टता लक्षित होती हो, परन्तु वास्तव में जब वह दोष से संबंधित रहता हो, तो ही उसे हेत्वाभास कहते हैं | 450 रत्नाकरावतारिका में बौद्धों के त्रिलक्षण एवं नैयायिकों के पंचलक्षण हेतुवाद की समीक्षा - जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि कहते हैं कि बौद्धों के त्रिलक्षण हेतुवाद एवं नैयायिकों के पाँच लक्षण हेतुवाद में जो हेतु के लक्षण हैं, वे सद्हेतु के प्रतिपादक न होकर हेत्वाभास ही हैं । बौद्धों एवं नैयायिकों के सद्हेतु के लक्षण में अतिव्याप्ति - दोष है, अर्थात् वे अपनी स्थापना में लक्षण तो सद्हेतु का करते हैं, किन्तु वह सद्हेतु न होकर हेत्वाभास ही सिद्ध होता है, उसमें अतिव्याप्ति - दोष है । 1451 307 डॉ. धर्मचन्द जैन 'बौद्ध प्रमाण - मीमांसा की जैन- दृष्टि से समीक्षा' में कहते हैं- 'अन्यथानुपपन्न ही सद्हेतु का लक्षण है, त्रिलक्षण हेतु नहीं, क्योंकि तत्पुत्रत्वादि हेतुओं में त्रिलक्षण के होने पर भी अन्यथानुपपन्न के अभाव में सद्हेतुता नहीं है, अतः, (हेतु की) त्रिलक्षणता निष्फल ( दोषयुक्त) है 1452 450 देखें- भारतीय दर्शन, पं. बलदेव उपाध्याय, पृ. 259 451 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 417 452 देखें - अन्यथानुपपन्नत्वे, ननु दृष्टा सुहेतुता। नासति त्र्यंशकस्यापि तस्मात् क्लीवास्त्रिलक्षणाः Jain Education International तत्त्वसंग्रह, 1363 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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