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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 29 5. हरिभद्रकृत दार्शनिक-ग्रन्थों में बौद्धदर्शन - जैन–दार्शनिक-साहित्य की विकास यात्रा में हरिभद्र का महत्वपूर्ण स्थान है। हरिभद्र के काल तक बौद्ध-दर्शन भी अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में आ चुका था। हरिभद्र का काल पंरपरागत-दृष्टि से छठवीं शताब्दी और विद्वानों की दृष्टि से आठवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध माना जाता है। आचार्य हरिभद्र के संदर्भ में यह कथा प्रसिद्ध है कि इन्होंने अपने दो शिष्यों को बौद्ध-दर्शन के अध्ययन के लिए भेजा था, साथ ही यह भी माना जाता है कि, वे जैन हैं- ऐसा ज्ञात होने पर उन दोनों शिष्यों की हत्या कर दी गई। परिणामस्वरूप, हरिभद्र का मन आक्रोश से भर गया, फिर भी एक जैन-आचार्य के रूप में उन्होंने प्रतिहिंसा का मार्ग न अपनाकर अपने ग्रन्थों के माध्यम से बौद्धदर्शन की समीक्षा को महत्व दिया। आचार्य हरिभद्र के दर्शन संबंधी ग्रन्थों में षड्दर्शनसमुच्चय और शास्त्रवार्तासमुच्चय- ऐसे दो आदर्श ग्रन्थ हैं। षड्दर्शनसमुच्चय की मूल कारिकाओं में उन्होंने बौद्धमत को अत्यन्त शालीनता के साथ प्रस्तुत किया है, उसमें कहीं भी खंडन-मंडन का भाव नहीं है। यह हरिभद्र की समदर्शी दृष्टि का ही परिचायक है। संभवतः, दर्शन-संग्राहक ग्रंथों में अपनी प्रामाणिकता की अपेक्षा से हरिभद्र का षड्दर्शनसमुच्चय एक प्रमुख ग्रंथ है। इस ग्रंथ में बौद्ध-दर्शन के सामान्य सिद्धान्तों के साथ-साथ विज्ञानवाद और शून्यवाद का भी प्रस्तुतिकरण उपलब्ध होता है। षड्दर्शनसमुच्चय के पश्चात् हरिभद्र के ग्रन्थों में शास्त्रवार्तासमुच्चय का स्थान आता है। यद्यपि शास्त्रवार्तासमुच्चय में बौद्धों के क्षणिकवाद, संततिवाद, विज्ञानवाद और शून्यवाद का प्रस्तुतिकरण एवं उनकी मृदु समीक्षा भी उपलब्ध होती है, किन्तु इस ग्रंथ में भी हरिभद्र का दृष्टिकोण अत्यन्त उदार रहा है। उन्होंने बुद्ध के प्रति विनय भाव प्रकट करते हुए स्पष्ट शब्दों में यह कहा है कि सुगत ने अपने शिष्यों की योग्यता के आधार पर ही इन विभिन्न वादों का प्रतिपादन किया है। क्षणिकवाद की समीक्षा में स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सांसारिक-पदार्थों के प्रति आसक्ति का प्राहाण (समाप्त) करने के लिए ही बुद्ध ने अनात्मवाद और क्षणिकवाद जैसे सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि हरिभद्र का बौद्ध-दर्शन के सिद्धान्तों का प्रस्तुतिकरण और उनकी समीक्षा-दोनों ही एक उदार दृष्टिकोण के परिचायक हैं। हरिभद्र के दर्शन संबंधी अन्य ग्रंथों में अनेकान्तजयपताका, अनेकान्तप्रवेश, अनेकान्तप्रघट, स्याद्वादकुचोद्य-परिहार आदि ग्रन्थ भी प्रसिद्ध हैं। इन ग्रन्थों में भी हमें बौद्ध-दर्शन की समीक्षा उपलब्ध हो जाती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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