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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा कहलाता है। यहाँ पर जलाशय विपक्ष है । यद्यपि जलाशय में धुआँ अवश्य निकलता है, किंतु वहाँ आग के अभाव में अकेले धुएँ से हेतु की सिद्धि नहीं हो जाती, अर्थात् साध्य के अभाव वाले स्थान में हेतु का अभाव होना विपक्षासत्व है, परन्तु यदि 'पर्वतो वह्निमान् प्रमेयत्वात् इस प्रकार, पर्वत रूप पक्ष में अग्नि की सिद्धि के लिए धूम के बदले यदि प्रत्येक हेतु दिया जाए, तो वह प्रमेयत्व - हेतु विपक्ष में भी विद्यमान है, इसलिए वह यथार्थ - हेतु नहीं कहा जा सकता है। तात्पर्य यह है कि प्रमेयत्व - हेतु साध्याभाव अर्थात् अग्नि के अभाव वाले जलाशय आदि स्थानों में विद्यमान है, किन्तु यथार्थ - हेतु का तो आग के अभाव में कदापि न होना ही विपक्ष-असत्व - हेतु का तीसरा लक्षण है । 45 4. अबाधित-विषयत्व जो भी वस्तु है, अर्थात् जो भी प्रमेय है, अथवा जिसको भी सिद्ध करना है, वह अबाधित होना चाहिए । अनुमान से युक्त हेतु प्रत्यक्ष – अनुमान आगम आदि प्रमाणों से खंडित (बाधित) नहीं होना चाहिए। यथा 'पर्वतो वह्निमान् धूमात् यहाँ पर यदि वह्नि (अग्निरूपी साध्य) अबाधित है, तो वहाँ धूम (हेतु) को भी किसी प्रत्यक्षादि प्रमाण से बाधित नहीं होना चाहिए । अग्नि जल के समान एक द्रव्य होने से (जल के समान ही ) शीतल है। यहाँ इस अनुमान में अग्नि में शीतलतारूपी साध्य की सिद्धि, जो द्रव्यत्व - हेतु द्वारा की गई, वह प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित है। चूंकि अग्नि शीतल नहीं होती है, इसलिए हेतु (द्रव्यत्व) भी बाधित होगा, अतः, अग्नि की शीतलता प्रत्यक्ष प्रमाण से बाधित हो जाती है । ब्राह्मण को शराब पीना चाहिए, क्योंकि वह भी जल के समान ही एक तरल पदार्थ है । यहाँ 'ब्राह्मण को शराब पीना चाहिए यह साध्य आगम-प्रमाण से बाधित है, इसलिए द्रव्यत्व - हेतु भी बाधित विषय वाला ही होगा । ब्राह्मण मदिरा नहीं पीते हैं और जो पीते हैं, वे ब्राह्मण नहीं हैं- यह आगम-प्रमाण से सिद्ध है । इस प्रकार से प्रथम अनुमान में द्रव्यत्न- हेतु और दूसरे अनुमान में द्रवत्व (तरलता) हेतु- ये दोनों हेतु जिस प्रकार प्रत्यक्ष और आगम-प्रमाण से बाधित हैं, उससे इनका साध्य भी बाधित विषय वाला बन जाता है, लेकिन हेतु को भी बाधित नहीं होना चाहिए। आशय यह है कि साध्य बाधित विषय वाला बन भी जाए, किन्तु 'हेतु' को तो प्रत्यक्ष आदि किसी भी Jain Education International Ce 305 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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