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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
(असत्व) को सिद्ध नहीं कर सकता है । घट में पट का असत्व (अभाव) पट का असत्व (अभाव) नहीं है, अपितु अन्य देश-काल में उसकी सत्ता (सत्व) का ही सूचक है। इस प्रकार से वस्तु न तो सर्वथा अभावरूप है और न सर्वथा भावरूप है, अतः, आपका यह कहना कि जो स्व-सत्व (स्व की सत्ता) है, वही पर का असत्व (पर का अभाव ) है - ऐसा सिद्ध नहीं होता है । एक वस्तु में दूसरे का अभाव होता है, किन्तु वह अभाव भी उस वस्तु की अपेक्षा से सत् ही होता है। अतः आप बौद्धों को यह बात स्वीकार कर लेना चाहिए कि वस्तु एक-दूसरे की अपेक्षा से ही सत्-असत्रूप होती है, एकान्त - सत्व या एकान्त-असत्वरूप नहीं है, अतः, जो स्व-सत्व है, वही पर-असत्व है - ऐसा नहीं हैं, अपितु स्व भी सत्व -असत्वरूप है और पर भी सत्व-असत्वरूप है । द्रव्यों में एक-दूसरे का अभाव होता है, किन्तु जिनका अभाव होता है, वे भी मात्र अभावरूप नहीं होते हैं । स्व में पर का अभाव एकान्तरूप से पट का अभाव नहीं है, वह तो सापेक्षिक - अभाव ही है, इसलिए आप बौद्धों का वस्तु में पर का अभाव मानना उचित है, किन्तु वस्तु में स्व के सत्व के साथ ही पर का असत्व (अभाव) होता है, अतः, आप बौद्धों को यह भी मानना चाहिए और यह 'पर' भी स्व की अपेक्षा से ही असत् होता है, किन्तु वह 'पर' भी अपनी अपेक्षा से सत् भी होता है। आपको यह स्वीकार करना होगा कि यह अनेकान्तरूप वस्तुस्वरूप की व्यवस्था ही है, सम्यक् कही जा सकती है। वस्तु एकान्तरूप से न तो भेदरूप है और न अभेदरूप है । अनेकान्त - दृष्टि एकान्तभेद और एकान्त - अभेद का तिरस्कार करती है, किन्तु सापेक्ष रूप से भेद और अभेद - दोनों को स्वीकार करती है। 428
429 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 748
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