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________________ 298 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा तो फिर वस्तु के सर्वात्मक और सर्वमय होने का प्रसंग उपस्थित होगा। ऐसी स्थिति में गुड़ और गोबर एक ही हो जाएँगे। घट और पट में कोई अन्तर नहीं रहेगा, घट पटरूप होगा और पट घटरूप होगा और इस प्रकार, भिन्न-भिन्न पदार्थों की समस्त व्यवस्था ही समाप्त हो जाएगी। वस्तु में पर के गुण धर्मों का अभाव होने का अर्थ उसका असत् होना नहीं है। वस्तु में पर के गुण-धर्मों का अभाव होने से वस्तु का स्वयं का अभाव नहीं होता है। दूसरे यह कि जिन गुण-धर्मों का जिस वस्तु-विशेष में अभाव बताया गया है, वे गुण-धर्म भी सर्वथा असत नहीं हैं, क्योंकि अन्य किसी वस्तु में वे अस्तित्वरूप है ही, अतः, अभाव भी एकान्तरूप से अभाव नहीं है। इसी प्रकार, मृत्तिका-पिण्ड के घटरूप में परिणत होते समय उसके साथ सहकारी-कारणों का सद्भाव होता है। मृत्तिका का घट बनने के बाद उसके साथ उन सहकारी-कारणों का वियोग हो जाता है, किन्तु इसका यह अर्थ भी नहीं है कि वे सहकारी-कारण अस्तित्व में ही नहीं हैं। उदाहरणार्थ, घड़ा बनाते समय चक्र, दंड आदि सहकारी-कारणों का मिट्टी-द्रव्य के साथ संयोग होता है, किन्तु कालान्तर में वह संयोग भी वियोग में बदल जाता है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि उन सहकारी-कारणों का सर्वथा अभाव हो गया।" बौद्ध - इस पर, बौद्ध-दार्शनिक कहते हैं कि हम भी पर के असत्व को स्व-सत्व से पृथक नहीं मानते हैं, साथ ही पर का असत्व सर्वथा अभावरूप है- ऐसा भी हम नहीं मानते हैं, अपितु हमारी मान्यता यह है कि जो स्व-सत्व है, वही पर-असत्व है। स्व-सत्व से पृथक् पर-असत्व जैसी कोई वस्तु नहीं है। 28 जैन - बौद्धों के इस कथन पर जैन-दार्शनिक रत्नप्रभसूरि कहते हैं कि आपका यह कथन इन्द्रजालिक के समान ही है, क्योंकि आप जो यह कहते हैं कि जो स्व-सत्व (स्व की सत्ता) है, वही पर-असत्व (पर का अभाव) है, जिसका अर्थ यह हुआ कि पर की अपेक्षा वाला ऐसा स्व से भिन्न कोई असत्व (अभाव) नहीं है, किन्तु घट में पट के गुण-धर्मों का असत्व (अभाव) है, पर इससे यह फलित नहीं होता है कि पर की सत्ता (अस्तित्व) ही नहीं है। घट में पटत्व का अभाव या असत्व है, किन्तु पट में पटत्व की सत्ता (सत्व) तो है ही। घट में पट का अभाव, पट के अभाव 427 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 747, 748 428 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 748 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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