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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 291 करते हैं, किन्तु उनके अनुसार, सभी पदार्थ क्षणिक होने के कारण क्षणजीवी होते हैं। सामान्य तो सार्वकालिक और सार्वदेशिक होता है। उनकी मान्यता है कि संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो त्रिकाल में परिवर्तन को प्राप्त ही न हो। यदि सभी पदार्थ परिवर्तनशील और क्षणिक हैं, तो फिर सार्वदेशिक और सार्वकालिक-सामान्य की कोई सत्ता ही नहीं होगी। इसी प्रकार, योगाचार या विज्ञानवादी और माध्यमिक या शून्यवादी ही बाह्यार्थ की सत्ता को स्वीकार नहीं करते हैं। जब बाह्यार्थ की कोई सत्ता ही नहीं है, तो फिर सामान्य ली कल्पना ही निरर्थक है। इस प्रकार, अन्य दार्शनिक-प्रश्नों पर मतभेद होते हुए भी सभी बौद्ध-दार्शनिक इस संबंध में एकमत हैं कि सामान्य मात्र काल्पनिक है, वह वास्तविक नहीं है। यही कारण था कि बौद्ध-न्याय के सभी ग्रन्थों में सामान्य को वस्तुसत के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है, अपितु वे सामान्य को सादृश्य के रूप में ही स्वीकार करते हैं। हेतुबिन्दु की टीका में कार्यहेतु-निरूपण नामक तीसरे अध्याय में अर्चट ने सामान्य धर्म की विशेष रूप से चर्चा की है। बौद्ध-दार्शनिक यद्यपि अनुमान का विषय सामान्य को स्वीकार करते हैं, किन्तु वे परमार्थतः सामान्य की सत्ता को स्वीकार नहीं करते हैं। उनके अनुसार, सामान्य काल्पनिक ही है। काल्पनिक सत् ही है, यथार्थ नहीं है। उन्होंने स्वलक्षण को प्रत्यक्ष कहा है और सामान्य लक्षण को अनुमान का विषय बताया है, किन्तु अनुमान को कल्पनाजन्य मानने के कारण वे सामान्य को भी कल्पनारूप ही मानते हैं। बौद्ध-दार्शनिकों का स्पष्ट रूप से कहना है कि सामान्य प्रतीति का विषय नहीं है।" जैनाचार्य रत्नप्रभसरि ने रत्नाकरावतारिका में बौद्धों द्वारा सामान्य को काल्पनिक मानने की अवधारणा की विस्तृत समीक्षा की है और यह बताने का प्रयास किया है कि यदि बौद्धदर्शन सामान्य को मात्र काल्पनिक मानता है, तो ऐसी स्थिति में उसके दर्शन में अनमान की प्रमाणता भी सिद्ध नहीं होगी, क्योंकि अनुमान सामान्य-बोध या व्याप्ति-ज्ञान पर निर्भर करता है। व्याप्ति-ज्ञान के अभाव में अनुमान-प्रमाण भी नहीं रह पाएगा, अतः, अनुमान को प्रमाण मानने पर सामान्य को स्वीकार करना होगा, क्योंकि व्याप्ति, जिस पर अनुमान आधारित है, वह सामान्य लक्षणवाली भी है। सामान्य को अस्वीकार करने पर व्याप्ति का ग्रहण नहीं होगा और 410 देखें - हेतुबिन्दु टीका, पृ. 150, 151 " देखं - हेतुबिन्दु टीका, सामान्यं न प्रतीयते, पृ. 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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