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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 17 19 है कि इन्होंने तत्त्वार्थसूत्र पर गन्धहस्ती महाभाष्य भी लिखा था, यद्यपि यह ग्रंथ भी आज अनुपलब्ध है । अतः, समन्तभद्र की रचनाओं में आप्त-मीमांसा ही एक ऐसा ग्रन्थ है, जो आज उपलब्ध भी है और उसके कर्तृत्व के सम्बन्ध में कोई विवाद भी नहीं है । आप्त-मीमांसा में अभावेकांत की समीक्षा प्रस्तुत की गई है। मूलकारिका में आचार्य ने यद्यपि स्पष्ट रूप से बौद्धों का कोई निर्देश नहीं किया है, किन्तु इसकी टीका में ज्ञानाद्वैतवादी, अर्थात् विज्ञानवादी तथा शून्यवादी बौद्धों की समीक्षा उपलब्ध होती है। 7 इसके एक श्लोक की टीका में विज्ञानवादी - बौद्धों के विज्ञानाद्वैत एवं शून्यवादी - बौद्धों के शून्यवाद तथा नैरात्म्यवाद की भी समीक्षा उपलब्ध होती है। 18 इसके अतिरिक्त, टीका में बौद्धदर्शन के एकान्त - अवाच्यता के सिद्धान्त की भी समीक्षा की गई है। " इस प्रकार, आप्त-मीमांसा की मूल कारिका में चाहे सामान्य रूप से अभाव एकांत को प्रस्तुत कर उसकी समीक्षा की गई है, किन्तु आप्त-मीमांसा की टीकाओं में इन कारिकाओं का आधार लेकर टीकाकारों ने बौद्धों के अनेक सिद्धान्तों की समीक्षा कर दी है । यहाँ तक कि इसमें बौद्धों के निर्विकल्प - प्रत्यक्ष या 'कल्पना अपोढ़ ज्ञानं प्रत्यक्षम् की भी समीक्षा की गई है। 2 ऐसा लगता है कि मूल ग्रन्थकार के समक्ष तो मात्र बौद्धों के विज्ञानवाद और शून्यवाद के सिद्धान्त ही थे, किन्तु कालांतर में टीकाकारों ने आप्त-मीमांसा की दसवीं से लेकर बारहवीं कारिका तक के श्लोकों को आधार बनाकर बौद्ध - मंतव्यों की विस्तृत समीक्षा की है। इसी प्रकार, आप्त-मीमांसा की सातवीं कारिका मुख्य रूप से विज्ञानाद्वैत और शून्याद्वैत की समीक्षा का अवसर प्रदान कर देती है। आप्त-मीमांसा की कारिका इकतीस में बौद्धों की इस मान्यता की भी समीक्षा मिल जाती है कि शब्द केवल सामान्य को ही विषय करते हैं, विशेष या स्वलक्षण को वाच्य नहीं बना सकते । इस आधार को लेकर बौद्धों के अपोहवाद की समीक्षा भी आप्त-मीमांसा की टीकाओं में उपलब्ध हो जाती है। इसी प्रकार, आप्त-मीमांसा की कारिका तेंतालीस में क्षणिक - एकान्तवाद और सन्तानवाद की सामान्य समीक्षा भी उपलब्ध होती है । " इसी प्रकार, कारिका इक्यावन में भी बौद्धों के नैरात्म्यवाद और 21 17 देखें - आप्तमीमांसा, समन्तभद्र, कारिका 7 18 आप्तमीमांसा, कारिका 3 टीका, पृ. 46, कारिका 69 19 आप्तमीमांसा, कारिका 70 टीका 20 आप्तमीमांसा, कारिका 70 21 आप्तमीमांसा, कारिका 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only 27 www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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