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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
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सामान्य लक्षणा-प्रत्यासत्ति को नहीं माना था, इसलिए व्याप्ति की स्थापना के लिए उनको तर्क-प्रमाण को अलग से स्वीकार करना पड़ा और तर्क को प्रमाणरूप स्वीकार करने के लिए स्मृति और प्रत्यभिज्ञा की प्रमाणरूपता आवश्यक थी, क्योंकि स्मृति की प्रमाणता के अभाव में प्रत्यभिज्ञा प्रमाणरूप नहीं हो सकती और प्रत्यभिज्ञा को प्रमाणरूप हुए बिना तर्क या व्याप्तिबोध प्रमाणरूप नहीं होगा और बिना व्याप्तिबोध के अनुमान भी प्रमाण नहीं होगा, इसलिए हमारी दृष्टि में जैनों के द्वारा स्मृति, प्रत्यभिज्ञा और तर्क को प्रमाणरूप मानना आवश्यक था।
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