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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 261 संबंध में प्रज्ञाकर का कथन है कि मुरमुर-अवस्था में अग्नि उपस्थित होती है, किन्तु वहाँ धूमरूप कार्य नहीं होता है। पर्वत अग्निवान् है, अतः, पर्वत धूमवान् है- यह अनुमान सत्य सिद्ध हो, ऐसा आवश्यक नहीं है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहाँ अग्नि की उपस्थिति होने पर भी धूम रूप कार्य नहीं होता है, अतः, प्रज्ञाकर का कहना है कि जैन-दार्शनिकों द्वारा साध्य की सिद्धि के लिए कारण-हेतु को स्वीकार करना उचित नहीं है। 85 बौद्धों के पूर्वपक्ष की पुष्टि की युक्तियों की रत्नप्रभसूरि द्वारा की गई समीक्षा - जैन - इसके प्रत्युत्तर में, जैन-दार्शनिक रत्नप्रभसूरि रत्नाकरावतारिका में लिखते हैं कि हम सामान्य कारण को हेतु नहीं कहते हैं, अपितु विशिष्ट कारण या कारण-साकल्य को ही हेतु कहते हैं। धूम की उत्पत्ति में अग्नि ही एकमात्र कारण नहीं है, अग्नि के साथ-साथ आर्द्र इंधन भी धूम की उत्पत्ति के लिए आवश्यक होता है। इस प्रकार, जैन-दर्शन के अनुसार धूम की उत्पत्ति में आर्द्र ईधनयुक्त अग्नि ही विशिष्ट कारण या कारण-साकल्य है। यहाँ रत्नप्रभसूरि यह भी स्पष्ट करते हैं कि आर्द्र ईंधन की उपस्थिति में ही अग्नि धूमरूप कार्य करने में समर्थ होती है। यहाँ जैन-दार्शनिक रत्नप्रभ का कहना यह है कि अप्रतिबद्ध सामर्थ्य वाली और उग्र सामग्री वाली अग्नि, अर्थात् आर्द्र इंधन से युक्त अग्नि ही धूमरूप कार्य का कारण होती है। किसी भी कार्य के होने के लिए जो सामग्री आवश्यक है, वह सम्पूर्ण कारण सामग्री ही कारण होती है, अतः, रत्नप्रभ का कहना है कि बौद्ध कारण हेतु के स्वीकार करने में हाई दोष नहीं है। बौद्ध - इसके प्रत्युत्तर में, बौद्ध-दार्शनिक प्रज्ञाकर का कहना है कि अग्नि अप्रतिबद्ध सामर्थ्य वाली है, या प्रतिबद्ध सामर्थ्य वाली ? अथवा अग्नि उग्र अर्थात् आवश्यक सामग्री से युक्त है ? या आवश्यक कारण सामग्री से रहित है ? यह जानना सामान्य व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। अग्नि की उपस्थिति में भी धूमरूपी कार्य का अभाव प्रत्यक्ष देखा जाता है, 500 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 466 36 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 466, 467 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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