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________________ 260 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा अनुमान तात्त्विक रूप से ही प्रमाण है। यह कथन पत्थर पर खींची हुई रेखा के समान अमिट है, जिसको ईश्वर भी बदल नहीं सकता है।383 व्याप्ति-सम्बन्ध की सिद्धि हेतु अविरुद्ध उपलब्धिरूप जैनों द्वारा मान्य हेतु के छः भेदों की बौद्धों द्वारा की गई समीक्षा जैन-दार्शनिक वादिदेवसूरि ने व्याप्ति-संबंध की सिद्धि के सन्दर्भ में अविरुद्धोपलब्धि के छ: भेदों का उल्लेख किया है। प्रमाणनयतत्त्वालोक के तृतीय परिच्छेद के 69 वें सूत्र में अविरुद्धोपलब्धि के निम्न छ: भेद बताए हैं- 1. व्याप्यरूप हेतु की उपलब्धि, 2. कार्यरूप हेतु की उपलब्धि 3. कारणरूप-हेतु की उपलब्धि 4. पूर्वचर-हेतु की उपलब्धि 5. उत्तरचर-हेतु की उपलब्धि, 6. सहचर-हेतु की उपलब्धि । बौद्धों का पूर्वपक्ष - __जैन-दार्शनिक वादिदेवसूरि का कथन है कि उपर्युक्त छः अविरुद्ध हेतुओं में से किसी एक के होने पर व्याप्ति-संबंध सिद्ध हो जाता है, किन्तु जैनों की इस मान्यता से बौद्ध-दार्शनिक सहमत नहीं हैं। बौद्ध-दार्शनिक प्रज्ञाकर गुप्त ने इस संबंध में विस्तार से जैन-मान्यता की समीक्षा की है। उनका कहना है कि स्वभाव-हेतु और कार्य हेतु- इन दोनों हेतुओं से ही साध्य की सिद्धि हो जाती है, शेष चार हेतु, अर्थात् कारण-हेतु, पूर्वचर-हेतु, उत्तरचर-हेतु, और सहचर-हेतु साध्य की सिद्धि में समर्थ नहीं हैं। 365 बौद्धों के पूर्वपक्ष की सिद्धि हेतु प्रज्ञाकर के तर्क - (अ) कारण हेतु की समीक्षा - सर्वप्रथम, प्रज्ञाकर ने कारण हेतु की समीक्षा करते हुए यह कहा है कि कारण के उपस्थित होने पर कार्य का होना आवश्यक नहीं है। दूसरे शब्दों में, कारण से कार्य की सिद्धि नहीं होती है। उदाहरण के रूप में, धूम की उत्पत्ति के लिए कारण अवश्य है, किंतु अग्निरूप कारण की उपस्थिति होने पर धूमरूप कार्य होता ही है- ऐसे अविनाभाव-संबंध या व्याप्ति-संबंध के अभाव में कारण-हेतु से साध्य की सिद्धि संभव नहीं होती है। इस 363 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 403 364 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 465 365 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 466 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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