SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा जैन इसके उत्तर में जैन - दार्शनिक रत्नप्रभसूरि कहते हैं कि ऐसा सादृश्य-बोध कहीं प्रत्यभिज्ञा कहलाता है, तो कहीं प्रत्यक्ष भी कहलाता है, जैसे- सामने गाय दिखाई दे रही है, किन्तु पूर्व में अनुभूत गवय (नीलगाय) वर्त्तमान में नहीं दिखाई दे रही है, मात्र उसकी स्मृति है । ऐसी परोक्ष गवय के साथ उस समय उपस्थित गाय को देखकर उसकी स्मृति की गवय से सदृशता की कल्पना करना ही प्रत्यभिज्ञा कहलाती है 333 248 बौद्ध इस संबंध में बौद्धों का प्रश्न यह है कि जो गवयादि पूर्व में अनुभूत हैं, अभी वर्त्तमान में प्रत्यक्ष नहीं हैं, सिर्फ मन से ही उसकी कल्पना होती है या उनके मानसिक- संस्कार हैं, तो उस गवयादि को जानने के लिए 'अनेन' शब्द का प्रयोग कैसे होगा ? एतद् और इदम्- ये दोनों तो सर्वनाम हैं। 'यह और वह' पूर्वानुभूत कोई भी वस्तु हो, चाहे वर्त्तमानकालीन हो या भूतकालीन, किन्तु वह प्रत्यक्ष-बोध को ही सूचित करती है। यथा- यह घट है, वह पूर्वानुभूत घट था- इन दोनों वाक्यों में 'यह' और 'वह' - ऐसे सर्वनामों का प्रयोग प्रत्यक्षानुभूति का ही बोधक होता है, परोक्ष वस्तु का बोधक नहीं होता है, तो यहाँ सादृश्य बताने हेतु 'अनेन' शब्द परोक्ष के गवयादि का बोधक कैसे होगा ? 334 - जैन इस पर, जैन कहते हैं कि 'एतद् ( वह )' और 'इदम् (यह ) - ये दोनों सर्वनाम शब्द चाहे प्रत्यक्ष पदार्थ के ही बोधक हों, फिर भी परोक्ष पदार्थ को भी अपने सामने साक्षात् के समान ही दर्शाते हैं। इस प्रकार, की कल्पना से परोक्ष पदार्थ में भी प्रत्यक्षसूचक सर्वनामों का प्रयोग हो सकता है, जैसे 'यह धुआँ यहाँ अग्नि का अनुमान कराता है, इसका तात्पर्य यह होगा कि महानस आदि में जो अग्नि देखी थी वैसी ही 'यह अनुमानित अग्नि है, तो यहाँ 'एष' शब्द का जो प्रयोग हुआ है, वह प्रत्यक्षवर्ती होते हुए परोक्ष अग्नि को प्रत्यक्ष के समान दर्शाता है । 'इस वाक्य का यह अर्थ है, जिस समय ऐसा बोला गया है, उसके पश्चात् जब उसे समझाया जाता है, तो उस उच्चरित वाक्य के नष्ट हो जाने पर भी या उसके परोक्ष होने पर भी प्रत्यक्ष के समान उसका अर्थ होता है, 'अस्य' में होने वाला इदम् शब्द का अर्थ है । अतः, प्रत्यक्ष अर्थ का सूचक एतद् और. इदम् सर्वनाम भी परोक्ष-पदार्थ के सूचक बन सकते हैं । इस गाय की 333 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 393 334 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 394 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy