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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा
श्रमणों का उल्लेख तो मिलता है, किन्तु न तो वहाँ उनके मंतव्यों को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया गया है, न ही उनकी कोई समीक्षा की गई है।
जहाँ तक आगमयुग के जैनन्याय का प्रश्न है, उसमें हेतु या व्यवसाय के रूप में प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम और उपमान- ऐसे चार प्रमाणों की चर्चा मिलती है, किंतु उनमें मात्र इनका नाम उल्लेख मिलता है और ऐसा लगता है कि इस प्रमाण-चर्चा का अवतरण न्याय-दर्शन के आधार पर ही किया गया है। इस संबंध में विशेष रूप से ज्ञातव्य यह है कि बौद्ध-त्रिपिटकसाहित्य में भी नैयायिकों द्वारा मान्य इन प्रमाणों की ही चर्चा मिलती है। इसमें यह सिद्ध होता है कि प्रारंभिक युग में जैन और बौद्ध-दार्शनिक नैयायिकों के प्रमाणवाद को ही स्वीकार कर रहे थे। इस संबंध में जैन-परंपरा के आगमग्रंथों एवं बौद्ध-परंपरा के त्रिपिटक-साहित्य में कोई विशेष चर्चा भी उपलब्ध नहीं होती। तत्त्वार्थसूत्र के काल तक भी जैन-परंपरा में पंचज्ञानों को भी प्रमाण के रूप में स्वीकार किया गया है, अतः, स्वतंत्र रूप से प्रमाण-चर्चा और उसकी समीक्षा के कोई संदर्भ तत्त्वार्थसूत्र में भी नहीं मिलते हैं। प्राचीन स्तर के अर्द्धमागधी ग्रन्थों में मात्र बौद्धों के पंचस्कंधवाद और संततिवाद का ही उल्लेख हुआ है। संततिवाद, क्षणिकवाद या क्षणभंगवाद का ही तार्किक-प्रस्तुतिकरण है। इस युग में जैन और बौद्ध-मंतव्यों में तत्त्वमीमांसीय दृष्टि से यदि कोई अंतर देखा जा सकता है, तो वह मात्र इतना ही है कि जहाँ बौद्ध-दर्शन तत्त्व को उत्पाद-व्ययात्मक मान रहा था, वहीं जैन तत्त्व को उत्पाद, व्यय एवं ध्रौव्यात्मक मान रहा था। यथार्थ में बौद्ध-दार्शनिक मन्तव्यों की समीक्षा जैन-दार्शनिक-ग्रन्थों में और जैन-न्याय संबंधी ग्रन्थों में ही मिलती है। अनेकान्तस्थापन-युग का प्रारंभ मुख्यतः सिद्धसेनदिवाकर के सन्मतितर्कप्रकरण से और जैनन्याय का प्रारंभ सिद्धसेन के न्यायावतार-सूत्र से होता है। इसके पश्चात्, मल्लवादि के द्वादशारनयचक्र, समन्तभद्र की आप्त-मीमांसा आदि ग्रन्थ आते हैं, जिनमें बौद्ध-दर्शन की समीक्षा की गई है। तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक आदि टीकाओं में बौद्धदर्शन की विस्तृत समीक्षा नहीं है। अकलंक के लघीयस्त्रय एवं न्यायविनिश्चय, विद्यानंद की अष्टसहस्री, वादीराजसूरिकृत न्यायविनिश्चयनिर्णय, प्रभाचंद्रकृत प्रमेयकमलमार्तण्ड, वादिदेवसूरिकृत प्रमाणनयतत्त्वालोक, हेमचंद्र की अन्ययोगव्यवच्छेदिका एवं प्रमाणमीमांसा,
8 तत्त्वार्थसूत्र 1/2-3
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