SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा मल्लिषेणकृत स्याद्वादमंजरी नामक टीका, गुणरत्नकृत षट्दर्शनसमुच्चय की टीका आदि ग्रन्थों में हमें बौद्धदर्शन की मान्यताओं की विस्तृत समीक्षा उपलब्ध होती है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि जैन-ग्रन्थों में बौद्ध-दार्शनिक-मान्यताओं का पूर्वपक्ष के रूप में प्रस्तुतिकरण और जैन-दृष्टि से उनकी समीक्षा मुख्यतया अनेकान्तस्थापन-युग और प्रमाण-व्यवस्था-युग से ही मिलने लगती है। अग्रिम पंक्तियों में हम अनेकान्तस्थापन और प्रमाणव्यवस्था-युग के पूर्व निर्देशित कुछ ग्रन्थों को आधार बनाकर यह देखने का प्रयत्न करेंगे कि उनमें बौद्ध-दार्शनिक-मान्यताओं की समीक्षा किस रूप में उपलब्ध होती है ? 1. सिद्धसेनकृत सन्मतितर्क और न्यायावतार में बौद्ध-दर्शन की समीक्षा - सिद्धसेनदिवाकर को अनेकान्तवाद की स्थापना और जैन-प्रमाणचर्चा का आद्य दार्शनिक माना जा सकता है। इन्होंने अपने ग्रन्थ सन्मतितर्कप्रकरण, न्यायावतार और कुछ द्वात्रिंशिकाओं में बौद्ध-मंतव्यों की समीक्षा की है। जहाँ तक सन्मतितर्क का प्रश्न है, जैसा कि हम जानते हैं, यह ग्रन्थ अनेकान्तवाद की स्थापना से संबंधित है। इस ग्रंथ में यद्यपि स्पष्ट रूप से बौद्धों का नाम लेकर किसी मंतव्य की समीक्षा नहीं की गई है, किन्तु सत् के स्वरूप-लक्षण को लेकर बौद्धों के क्षणिकवाद की समीक्षा उपलब्ध हो जाती है। जहाँ बौद्ध-दर्शन सत् को मात्र उत्पाद-व्ययात्मक मानता है और इस प्रकार, से उसे क्षणिक सिद्ध करता है, वहाँ जैन-दार्शनिक या विशेष रूप से सिद्धसेनदिवाकर धौव्यता के लक्षण को जोड़कर सत् को नित्यानित्य या परिणामी-नित्यरूप में स्थापित करते हैं, जबकि बौद्धदर्शन सत् को मात्र परिणामी ही मानता है। सिद्धसेन ने सन्मतितर्क में सामान्य रूप से तो सभी एकान्त-दृष्टियों का खंडन किया है, किन्तु सन्मतितर्क के तृतीय कांड की पचासवीं गाथा में "सक्कोलया' के रूप में स्पष्ट रूप से बौद्धदर्शन एवं वैशेषिक दर्शन की समीक्षा प्रस्तुत की है। यद्यपि इस समीक्षा में वे सत्कार्यवाद को मानने वाले सांख्यों द्वारा बौद्ध और वैशेषिक के असत्-कार्यवाद की समीक्षा में जो दोष उद्भावित किए गए हैं, उन्हें सत्य कहकर बौद्ध एवं न्याय-वैशेषिक दर्शन के असत्कार्यवाद की समीक्षा करते हैं। यद्यपि इस प्रसंग में उन्होंने सांख्यों के सत्कार्यवाद और बौद्ध तथा वैशेषिकों के असतकार्यवाद- दोनों को ही एकान्तवाद बताकर उनकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy