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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
हैं, उसी प्रकार परंपरा से भूस्थित घट-पट आदि पदार्थ भी समारोप का कारण हैं, इसलिए स्वलक्षण अर्थात् भूस्थित घट-पट आदि पदार्थ (वाच्य होते हुए भी) कारण होने से आपके मत में वाचक बनेंगे और ऐसा होने पर मन में विकल्प को उत्पन्न करने में जितने कारण हैं, वे सब वाचक बनेंगे, जिससे प्रतिनियत वाच्य-वाचकभाव की जो व्यवस्था है, वह विनाश को प्राप्त हो जाएगी, अर्थात् घट शब्द और घट पदार्थरूप जो वाच्य - वाचक-व्यवस्था इस संसार में समस्त प्राणीमात्र को अनुभव से सिद्ध है, वह समाप्त हो जाएगी, इसलिए आप बौद्धों को यह समझना चाहिए कि शब्द वाचक ही हैं और सामान्य - विशेषात्मक (उभयात्मक) पदार्थ ही वाच्य है तथा शब्द जो हैं, वे स्वयं में रही हुई स्वाभाविक शक्ति और संकेतइन दोनों के द्वारा ही सामान्य- विशेषात्मक (उभयात्मक ) स्वभाव वाले ऐसे अर्थ का बोध कराने वाले हैं, यह एक निश्चित तथ्य है । 250
बौद्ध-दर्शन के अपोहवाद की समीक्षा
बौद्धों के अपोहवाद का सामान्य अर्थ -
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शब्द और अर्थ के संबंध को लेकर बौद्धदर्शन में अन्यापोह अथवा उसी के संक्षिप्त रूप, अपोह का सिद्धांत प्रस्तुत किया गया है। बौद्ध- दार्शनिकों की मान्यता है कि शब्द और बाह्यार्थ में कोई संबंध नहीं है, क्योंकि बाह्यार्थ स्वलक्षणरूप होता है, साथ ही वह क्षणिक एवं निरंश होता है। शब्द में क्षणिक एवं निरंश स्वलक्षण के संकेत की सामर्थ्य नहीं है । 255 दिङ्नाग के अनुसार, शब्द विकल्प से उत्पन्न होते हैं और विकल्प शब्द से उत्पन्न होते हैं, वे दोनों अन्योन्याश्रित हैं । विकल्प में स्वलक्षणरूप 'अर्थ' को स्पर्श करने की भी सामर्थ्य नहीं है। 256 बौद्धों के अनुसार, शब्द और अर्थ (पदार्थ) दोनों एक-दूसरे से भिन्न हैं । शब्द कान से सुना जाता है और अर्थ आँख से देखा जाता है, अतः, शब्द और अर्थ में तादात्म्य - संबंध और तदुत्पत्ति-संबंध संभव नहीं है, 257 किन्तु फिर प्रश्न यह उठता है कि शब्द का वाच्यार्थ (Meaning) क्या है ? इसी को स्पष्ट करने
254 'रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 626
255
'तत्र स्वलक्षणं तावन्न शब्दैः प्रतिपाद्यते । - तत्त्वसंङ्ग्रह, पृ. 871
256 विकल्पयोनयः शब्दाः, विकल्पाः शब्दोनयः ।
कार्यकारणता तेषां नार्थं शब्दाः स्पृशन्यपि ।। दिङ्नाग्, उद्धत
Buddhist Logic,
Vol 2.P. 405, F.N.I
257 श्रोत्रेन्द्रियेण शब्दो गृह्यते, अर्थस्तु चक्षुरादिना । तत्त्वसंग्रहपंजिका 1512, पृ. 538
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