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__रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा
जैन - जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि कहते हैं कि जब आप शब्द के समान अनुमान-प्रमाण को भी अपोह द्वारा पदार्थ को विषय करने वाला मानते हैं, तो आपको शब्द को भी प्रमाण मान लेना चाहिए। चूंकि वक्ता के मुख से शब्द के उच्चारण होते ही श्रोता के मन में सर्वप्रथम विकल्प (अपोह) ही उत्पन्न होता है और वह अपोह (विकल्प) ही भूमि पर रहे हुए घट-पट आदि पदार्थ को बताने वाला होता है, अतः, पदार्थ के साथ प्रतिबद्ध होने से, अर्थात् शब्द (वाचक) का पदार्थ (वाच्य) के साथ संबंध होने से शब्द को भी प्रमाण मान लेना चाहिए।
बौद्ध - इस पर बौद्ध-दार्शनिक कहते हैं कि शब्द अपोह (विकल्प) को ही उत्पन्न करता है; किन्तु शब्द जिन पदार्थों को विषय बनाता है, वे विषयीभूत पदार्थ संसार में हों, यह कोई आवश्यक नहीं है, अतः, शब्द को प्रमाण कैसे कहा जा सकता है ? जिस प्रकार 1. अतीत के विषय, 2. अनागत के विषय तथा 3. आकाश-पुष्प- ये तीनों असत् हैं। जैसे- 1. ऋषभदेव भगवान् अतीत में हुए थे, वर्तमान में नहीं हैं, 2. पद्मप्रभ भगवान् भविष्य में होंगे, वर्तमान में नहीं हैं और 3. आकाश-पुष्प की सत्ता तीनों काल में संसार में है ही नहीं। ऋषभदेव भगवान् अतीत में हुए थेइसका उच्चारण भी शब्द द्वारा ही होता है, पद्मप्रभ भविष्य में होंगेइसका उच्चारण भी शब्द द्वारा ही होता है। आकाश पुष्प- इस कल्पित असत् पदार्थ का उच्चारण भी शब्द द्वारा ही होता है, इस प्रकार, ऋषभदेव भगवान् जो भूत में हुए थे, पद्मप्रभ, जो भविष्य में होंगे तथा आकाश-पुष्प, जो तीनों कालों में नहीं है- इन सब वर्तमान में अनस्तित्ववान् पदार्थों का प्रयोग शब्दों के द्वारा होने मात्र से शब्द का अर्थ के साथ संबंध हो जाता है, यह कोई आवश्यक नियम नहीं है। यद्यपि शब्द तो मात्र पदार्थ के वाचक ही होते हैं, चाहे वे पदार्थ संसार में न भी हों, अर्थात् असत् ही हो। निष्कर्ष यह है कि असत- पदार्थ को विषयीभूत करने वाले शब्द का अर्थ के साथ कोई संबंध ही नहीं हैं, इसलिए शब्द को प्रमाण नहीं माना जा सकता।20
जैन - इस पर जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि बौद्ध-दार्शनिकों से कहते हैं कि यदि आप शब्द का अर्थ के साथ कोई संबंध नहीं होने के कारण शब्द को प्रमाण नहीं मानते हैं, तो फिर अनुमान का पदार्थ के साथ कोई संबंध
219 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 615 220 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 615. 616
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