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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 187 नहीं होते हए भी अनमान को प्रमाण क्यों मानते हैं ? संसार में अनुमान के आधार पर कथन भी तो किया जाता है, जैसे- 1. हम पर्वत से निकलकर बहती हई नदी में आए हुए पूर अर्थात् जल की अधिकता को देखकर यह अनुमान करते हैं कि पर्वत पर कुछ समय पूर्व वर्षा हुई है, यह अनुमान ही है। 2. भरणी-नक्षत्र का उदय कुछ समय के पश्चात् होगा, क्योंकि अभी रेवती नक्षत्र का उदय हुआ है, तो भविष्य में होने वाले भरणी नक्षत्र के उदय का कथन भी तो अनुमान से ही हुआ ? 3. गधे के सींग नहीं होते हैं, इस कथन की सिद्धि प्रत्यक्ष आदि किसी भी प्रमाण से नहीं होती है, अतः, गधे के सींग नहीं होते हैं, तो यह असत्-वस्तु का कथन भी अनुमान से ही तो हुआ। तात्पर्य यह है कि अतीत, अनागत और असत्-वस्तु का अभाव होते हुए भी इन सबका कथन अनुमान से होने के कारण अनुमान का पदार्थ के साथ संबंध होता ही है- ऐसा अनिवार्य नियम कहाँ है ? इस प्रकार, अर्थ की प्रतिबद्धता के बिना भी आप (बौद्ध) अनुमान को तो प्रमाण मान रहे हैं, अतः, या तो आपको अनुमान को अप्रमाण मानना चाहिए, या फिर शब्द को प्रमाण मानना चाहिए। इस पर, बौद्ध-दार्शनिक कहते हैं कि यदि हम अनुमान के समान ही शब्द को भी प्रमाण मान लें, तो हमें वक्ता द्वारा बोले गए शब्द द्वारा उत्पन्न अपोह को भी परंपरा से पदार्थ के साथ संबंध वाला मानना होगा, तब ही शब्द को प्रमाण माना जा सकता है। यदि हम शब्द को प्रमाण मान भी लें, तो 'तुंबी डूब रही है (यह एक अनुभवसिद्ध बात है कि तुंबी कभी डूबती नहीं है) विप्रतारक अर्थात् ब्राह्मण को डूबने से बचाने वाले पुरुष द्वारा यही कहा जाता है कि तुंबी डूब रही है, क्योंकि ब्राह्मण तारने वाला होता है। यदि वह स्वयं डूब रहा हो, तो यही कहना होगा कि तुंबी (तारक) डूब रही है। इस कथन के समान ही अपोह (विकल्प) को भी ऐसा ही होना चाहिए, अर्थात अर्थ के साथ प्रतिबद्ध होना चाहिए, किन्तु शब्द का अर्थ के साथ कोई संबंध नहीं है, क्योंकि तूंबी तो तैरती ही है, उसे शब्द द्वारा डूबने वाला कहना यही सूचित करता है कि शब्द का अर्थ के साथ कोई संबंध नहीं है, अतः, शब्द प्रमाण नहीं है। पुनः, जैन-दार्शनिक रत्नप्रभसूरि कहते हैं कि 'तुंबी डूब रही हैइस वाक्य में तुंबी के न डूबने के गुण के कारण शब्द और अर्थ में संबंध नहीं मानना, आपका यह कथन उचित नहीं है, क्योंकि प्रत्येक शब्द का कोई न कोई अर्थ रहा हुआ है, परिस्थिति-विशेष में तुंबी डूब भी सकती है, तो तुंबी तैर भी सकती है। तुंबी में डूबने का और तैरने का- दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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