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________________ 182 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा आकार प्रतिबिम्बित हुआ है, वही अपोह है। तात्पर्य यह है कि मन में उत्पन्न विकल्प को अपोह कहते हैं। विवक्षित घट, पट आदि के "स्व आकार से भिन्न अन्य सब आकारों का निषेध करते हुए, अन्त में घट-आकाररूप या पट-आकाररूप एक विकल्प पर स्थिर हो जाने को अपोह कहते हैं।212 इस प्रकार, बौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर कहते हैं कि शब्द और पदार्थ में कोई वाच्य-वाचक-संबंध ही नहीं है। न तो शब्द वाचक हैं, न पदार्थ ही वाच्य है। शब्द तो पदार्थ को स्पर्श भी नहीं करते हैं। फलतः, बुद्धि में जो प्रतिबिम्बित स्वरूप (विकल्प) है, वही अपोह है। यह विकल्प ही शब्द का अर्थ (तात्पर्य) होता है। शब्द और अपोह में कार्य-कारण-भाव है। शब्द कारण हैं और अपोह कार्य है। इसी कार्य-कारण-भाव को ही वाच्य-वाचक-सम्बन्ध मान लेना चाहिए। आचार्य रत्नप्रभसरि बौद्धों के इस अपोहवाद का खण्डन करते हए कहते हैं कि प्रत्येक पदार्थ द्रव्य और पर्याय- दोनों से युक्त होने के कारण एक ही समय में उसमें एक साथ सामान्य और विशेष- दोनों रहते हैं, जिसमें किसी भी प्रकार का विरोध नहीं है, अर्थात् विरुद्ध-धर्माध्यास नहीं है। शब्द और पदार्थ में वाच्य-वाचक रहा हुआ है। जैन-दार्शनिक बौद्धों से कहते हैं कि आपके द्वारा उठाए गए तीन प्रश्न इस प्रकार, हैं- 1. शब्द एकान्त-सामान्य का वाचक है ? या 2. एकान्त-विशेष का वाचक है ? या 3. उभयात्मक है ? इन तीन प्रश्नों में प्रथम दोनों पक्ष, अर्थात् शब्द एकान्ततः सामान्य का वाचक है, या शब्द एकान्ततः विशेष का वाचक हैएकान्तिक होने से उचित नहीं हैं। 14 डॉ. सागरमल जैन जैन-भाषा-दर्शन में लिखते हैं- 'बौद्धों के अपोहवाद के सन्दर्भ में जैनों का प्रथम आक्षेप यह है कि शब्द का विषय केवल विकल्पित सामान्य नहीं है, अपितु यथार्थ सामान्य है। यह सत्य है कि व्यक्तियों से पृथक् किसी सामान्य की सत्ता नहीं है, सामान्य व्यक्तिनिष्ठ है, किन्तु फिर भी वह यथार्थ है, काल्पनिक नहीं है। जैनों के अनुसार, वस्तु अनन्त-धर्मात्मक है। प्रत्येक वस्तु के कुछ धर्म अन्य वस्तुओं 212 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 613 213 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 613 214 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 614 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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