SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा ऐसा मानना, अथवा शब्द पदार्थ का संकेतक है, यह मानना उचित नहीं है | 206 180 पुनः, बौद्ध कहते हैं कि यदि आप शब्द की वाच्यता - सामर्थ्य को विशेषात्मक मानते हैं, तो मान लो कि हमने किसी विशेष पदार्थ की ओर ऐसा संकेत किया कि यह घट है, यह पट है, किन्तु उन घट-पट आदि शब्द से वाच्य - 1 - विशेष पदार्थ व्यवहारकाल का अनुसरण करने वाला नहीं होने से घट-पट की ओर किया हुआ हमारा संकेत भी निरर्थक ही तो होगा ? क्योंकि घट-पट आदि शब्दों से जब तक घट-पट का बोध होगा, तब तक घट या पट-रूप विशेष वस्तु का विध्वंस हो जाएगा, अर्थात् ये विशेष घट-पट, जिन्हें वाच्य बनाया था, नष्ट हो जाएँगे, तो आपका विशेष कहाँ रहा? मान लो हमने 'वर्द्धमान स्वामी - इस शब्द से किसी व्यक्ति-विशेष की ओर संकेत किया, किन्तु वह वर्द्धमान स्वामी आज नहीं है, तो वह विशेष की ओर किया हुआ संकेत निरर्थक ही माना जाएगा। ज्ञातव्य है कि बौद्ध सामान्य को स्वीकार ही नहीं करते हैं, विशेष को मानकर भी उसे क्षणिक मानते हैं, अतः, उनके मतानुसार, शब्द न तो सामान्य (जाति) का संकेतक है और न विशेष (व्यक्ति) का संकेतक है । 207 तीसरे पक्ष का खण्डन करते हुए बौद्ध कहते हैं कि आपका तीसरा पक्ष भी उचित नहीं है, क्योंकि यदि आप वाचक शब्द को सामान्य और विशेष - ऐसा उभयात्मक मानते हैं, तो क्या आप एक-दूसरे से स्वतंत्र, ऐसे परस्पर अत्यन्त भिन्न, ऐसे सामान्य और विशेष को शब्द का विषय मानते हैं? या परस्पर अभिन्न तादात्म्य को प्राप्त सामान्य- विशेष को शब्द का विषय मानते हैं ?208 पहला पक्ष, वाचक शब्द को निरपेक्ष रूप से सामान्य भी नहीं मान सकते, क्योंकि सामान्य तो निष्क्रिय होने से आकाश - पुष्प की भांति असत् है। दूसरे, शब्द को निरपेक्ष रूप से विशेष भी नहीं मान सकते, क्योंकि शब्द निरपेक्ष-विशेष को दर्शाता हो, ऐसा भी नहीं है। चूंकि शब्द विकल्प को ही उत्पन्न करते हैं, विशेष को तो शब्द स्पर्श भी नहीं करते हैं, अतः, 206 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 611 207 'रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 611, 612 208 'रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 612 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy