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________________ 171 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा किसी अज्ञात वस्तु में भी शब्द-संकेत की संभावना स्वीकार करना पड़ेगी, क्योंकि बौद्धदर्शन के अनुसार प्रथम क्षण में जिस वस्तु की प्रतीति हुई, वह वस्तु तो उसी क्षण नष्ट हो गई, तो फिर उस नष्ट हुई वस्तु में संकेत कैसे होगा ?184 इसी प्रकार, यही बात गाय आदि के वाचक शब्दों के विषय में भी समझना चाहिए। वे गाय आदि के वाचक शब्द, चाहे उनका वाच्यार्थ प्रतीति का विषय हो, या प्रतीति का विषय न हो, किन्तु उस वाचक शब्द का संकेत प्रतीति की उस वाच्य-वस्तु में मानने पर भी पूर्वोक्त क्षणिकता के दोषरूप आपत्ति तो आएगी ही, कारण यह है कि बौद्धदर्शन के अनुसार, वाच्य अर्थ के समान वाचक शब्द भी क्षणिक हैं। क्षणिक शब्द एवं क्षणिक अर्थ (वस्तु) में संकेत संभव नहीं होने से संकेत का ही अभाव होगा। संकेत के अभाव में वाच्य-वाचकभाव की उत्पत्ति किस प्रकार से होगी ?185 __ शब्द और अर्थ- दोनों में जब तक संकेत-क्रिया न हो, तब तक शब्द और अर्थ- दोनों बने रहते हैं और उसके पश्चात् ही संकेत के सहकार से शब्द और अर्थ में वाच्य-वाचकभाव उत्पन्न होता है- ऐसा मान लेने पर भी शब्द और अर्थ के नष्ट होने के साथ ही वाच्य-वाचकभाव भी नष्ट हो जाता है, इतना तो मानना ही होगा। इसके प्रत्युत्तर में बौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर कहते हैं कि इस प्रकार, तो व्यवहार काल में शब्द और अर्थ में वाच्य-वाचकभावरूप संबंध का अभाव होने पर भी उसे अन्य अर्थ में संकेत करने का कार्य तो करना ही होता है, इतना तो मानना ही होगा, किन्तु इस तर्क की समीक्षा करते हुए रत्नप्रभसूरि कहते हैं कि इससे तो समग्र वचन-व्यवहार ही अस्त-व्यस्त हो जाएगा। चूंकि शब्द और अर्थ- दोनों अनेक हैं, उनमें कौनसा शब्द किस अर्थ का संकेतक है, यह व्यवस्था नहीं रहेगी, फलतः समग्र वचन-व्यवहार ही लोप हो जाएगा। इसी चर्चा के क्रम में बौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर अपने पक्ष की पुष्टि हेतु पुनः यह प्रश्न उठाते हैं कि संकेत तो व्यक्ति में न होकर जाति या 184 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 22 185 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 22 186 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 22 187 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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