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________________ 170 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा उत्पत्ति मानने पर तो तदुत्पत्ति-संबंध मानना होगा, जबकि ऐसा भी नहीं मान सकते हैं।180 संकेत के सहकार से वाच्य-वाचकभाव वाच्य-वाचक संबंध को उत्पन्न करता है- ऐसे अर्थ वाले यदि तीसरे विकल्प को स्वीकार करते हैं, तो आचार्य रत्नप्रभसूरि बौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर से यह प्रश्न करते हैं कि यह संकेत प्रसिद्ध वस्तु में होता है, या अप्रसिद्ध वस्तु में ? अप्रसिद्ध वस्तु में संकेत मानें, तो अतिप्रसंग-दोष आ जाने से संकेत होगा नहीं, अर्थात् देश और काल से व्यवहित (बाधित) ऐसे अप्रसिद्ध पदार्थ में भी संकेत का प्रसंग आता हो- ऐसा मानना भी उचित नहीं है। प्रसिद्ध वस्तु में भी संकेत हो नहीं सकता, क्योंकि आपके मत में सभी पदार्थों के क्षणिक होने से उत्पत्तिकाल में ही प्रचंड वायु के चलने से जिस प्रकार बादल बिखर जाते हैं, या नष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार सभी पदार्थ नष्ट हो जाते हैं, तो फिर संकेत किसमें करेंगे ?102 ___इसके प्रत्युत्तर में बौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर कहते हैं कि संकेत से जिस वस्तु का ज्ञान हुआ है, वह चाहे नष्ट हो जाए, अर्थात् वर्तमान के अनुभव एवं संकेत की वस्तु नष्ट हो जाए, किन्तु उस वस्तु के समान ही उस वस्तु की जातीय एवं सन्तति-परंपरा तो विद्यमान रहती है। जिस प्रकार संकेत के माध्यम से हमने किसी वस्तु का ज्ञान प्राप्त किया और कुछ समय पश्चात् वह वस्तु नष्ट हो गई, किन्तु उसके सदृश अन्य वस्तुओं के होने से उसकी जाति तो विद्यमान रहती है, अतः, किसी शब्द के संकेत का विषय जातिरूप से भविष्य में भी रहेगा ही।183 बौद्ध-दार्शनिकों के इस कथन की समीक्षा करते हुए आचार्य रत्नप्रभसूरि कहते हैं कि आपका यह कथन भी आपकी दार्शनिक-मान्यता के अनुसार रचित नहीं है, कारण कि किसी वस्तु के विद्यमान रहते हुए यदि उस वस्तु के वाचक शब्द का ज्ञान न हो, तो उसको जाति के सम्बन्ध में भी शब्द-संकेत का विषय नहीं बनाया जा सकता। आपकी पूर्वोक्त मान्यता में तो अतिप्रसंग-दोष है। फलतः, देश और काल से परे 180 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 20 181 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 21 182 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 22 183 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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