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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
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अध्याय - 5 शब्दार्थ-सम्बन्ध में बौद्ध एवं अन्य दार्शनिकों के मतों की समीक्षा
शब्दार्थ-सम्बन्ध को लेकर विभिन्न पक्ष
रत्नाकरावतारिका में सर्वप्रथम आदिवाक्य के प्रयोजन में निहित शब्द और अर्थ के सम्बन्ध को लेकर बौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर यह शंका प्रस्तुत करते हैं कि 1. शब्द और अर्थ में कोई संबंध ही नहीं हो सकता है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि 2. मीमांसक शब्द और अर्थ में तादात्म्य-संबंध मानते हैं। 3. नैयायिक शब्द और अर्थ में तदुत्पत्ति-संबंध मानते हैं और 4. जैन शब्द और अर्थ में वाच्य-वाचक-संबंध मानते हैं, किन्तु बौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर शब्द और अर्थ में कोई संबंध ही नहीं मानते हैं और अपने मत की पुष्टि हेतु वे शब्द और अर्थ में उपर्युक्त तीनों प्रकार के संबंध का खण्डन करते हैं।157
टीकाकार आचार्य रत्नप्रभसूरि के अनुसार, आदिवाक्य का मुख्य उद्देश्य तो ग्रन्थ-लेखन का प्रयोजन बताना है और इस प्रयोजन की सिद्धि शब्द और अर्थ के संबंध पर ही आधारित है। शब्दार्थ-सम्बन्ध के विषय में बौद्ध-पूर्वपक्ष -
चौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर द्वारा शब्दार्थ-संबंध पर कुछ शंकाएँ प्रस्तुत की गई हैं, अतः, रत्नाकरावतारिका के प्रारंभ में शब्दार्थ-संबंध पर विचार किया गया है।
बौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर द्वारा सर्वप्रथम यह प्रश्न उठाया गया है कि शब्द और अर्थ एक-दूसरे से परस्पर संबद्ध है या असंबद्ध ? यदि शब्द और अर्थ एक-दूसरे से असंबद्ध हैं- ऐसा मानते हैं, तो यह मत उचित
157 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 16
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