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________________ 148 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा नहीं है, अतः, यह कोई अवश्यम्भावी नियम नहीं है कि कार्य-कारण-भाव होने पर स्मृति भी हो। बौद्ध - इसके उत्तर में बौद्ध कहते हैं कि गुरु और शिष्य में भिन्नत्व तो है ही, इनमें बुद्धि के संबंध में कार्य-कारण-भाव के होने पर भी एक के अनुभवों की दूसरे को स्मृति कैसे होगी? इसका ही तो विरोध हमने किया है। हमारा कथन तो एक संतान को लेकर है। गुरु-शिष्य में एक सन्तानता नहीं है। एक ही की संतान में ही कार्य-कारण-भाव के होने पर स्मृति भी संभव होती है। 132 जैन - इस पर बौद्ध-दार्शनिकों का खण्डन करते हुए जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि बौद्धों से प्रश्न करते हैं कि जब आपका क्षणिकवाद सिद्ध नहीं हुआ, तो आपने एक सन्तानवाद का सहारा लिया, तो आप यह बताइए कि चैत्र अथवा मैत्र- दोनों में से किसी भी एक व्यक्ति की जो चित्तक्षण-परंपरा होती है, वही एक संतान है- ऐसा आप मानते हैं, तो यहाँ हमारा प्रश्न यह है कि क्षण-पंरपरा से एक संतान नामक तत्त्व भिन्न है या अभिन्न ? यदि आप ऐसा कहते हैं कि एक संतान-क्षण परंपरा से अभिन्न है, तो अभिन्न मानने का तात्पर्य तो यह होगा कि आपने हमारे आत्मतत्त्व को स्वीकार कर लिया है। दूसरे, अभिन्न मानने में तो सन्तानवाद कहाँ रहा, वह तो एक ही की क्षण-पंरपरा हुई। सन्तानवाद के न होने पर स्मृति भी संभव नहीं होगी। इसके पश्चात्, दूसरे प्रश्न के उत्तर में यदि आप यह कहते हैं कि क्षण-पंरपरा और संतान भिन्न-भिन्न हैं, तो पुनः नया प्रश्न उत्पन्न होता है कि भिन्न माना हुआ यह एक संतान कोई पारमार्थिक-पदार्थ है ? या मात्र काल्पनिक है ? यदि आप यह कहते हैं कि क्षणपरंपरा से एक संतान में भिन्नत्व होने के साथ ही एक संतान अपारमार्थिक अर्थात् कल्पनामात्र है, कोई भी यथार्थ वस्तु नहीं है, तो फिर कल्पना में स्मति नहीं होगी, अथवा स्मति होगी भी, तो वह अप्रामागिकता ही होगी ? अतः, कल्पना में स्मृति घटित नहीं होगी। वस्तुतः, हम जैनों द्वारा दिए गए स्मृति की असंभावना के दोष को दूर करने के लिए ही तो आप बौद्धों ने एक संतान की कल्पना की है, किन्तु आपका यह एक 131 रत्नाकरावतारिका, भाग III, रत्नप्रभसूरि, पृ. 243, 244 132 रत्नाकरावतारिका, भाग III, रत्नप्रभसूरि, पृ. 244 133 रत्नाकरावतारिका, भाग III, रत्नप्रभसूरि, पृ. 244, 245 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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