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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा
मैं मेरी गुरुभगिनी पूज्य श्री पुष्पकुंवरजी म.सा. की भी बहुत-बहुत कृतज्ञ हूँ कि आपके सहयोग के बिना मेरा स्वप्न साकार नहीं हो पाता। गुरुणी मैय्या की रिक्तता में आप सदैव प्रेरित करती रहीं एवं मेरे अध्ययनकाल में सेवारत रही, अतः, मैं श्रद्धायुत आपश्री को नमन करती हूँ।
____ मैं अपने समस्त गुरुभगिनी मण्डल की भी बहुत आभारी हूँ, क्योंकि उनका भी मुझे सदैव सहयोग मिलता रहा है।
__ अन्त में, मेरे ज्ञान-गुरु, मार्गदर्शक, विद्वत्त्रत्न डॉ. सागरमल जैन के प्रति बहुत-बहुत कृतज्ञता-ज्ञापित करती हूँ| आपका प्रारम्भ से ही मेरे अध्ययन में सहयोग मिलता रहा है। बी.ए., एम.ए. (दर्शनशास्त्र) एवं आचार्य की परीक्षा के अध्ययन में भी आपका ही मार्गदर्शन मुझे प्राप्त होता रहा है।
जैन-सिद्धान्ताचार्य की परीक्षा में जब आपसे रत्नाकरावतारिका के अध्ययन का सुयोग मिला, तब से ही मुझे सदैव ही आपकी प्ररेणा रही थी कि मुझे इस पर शोधकार्य करना है। आपके ही मार्गदर्शन एवं सहयोग से यह कार्य पूर्णता पर पहुँचा है और मैं इस लेखन कार्य को पूर्ण कर सकी हूँ। अन्त में, मैं आपसे सदैव यही अपेक्षा रखती हूँ कि अध्ययन के क्षेत्र में आपका मार्गदर्शन सदैव मिलता रहे। इस समय मैं आपके परिवार को भी विस्मृत नहीं कर सकती, क्योंकि ममतामयी मातृस्नेही श्रीमती कमला बहन एवं समस्त परिजनों का भी आत्मीयतापूर्ण मेरे इस कार्य में सहयोग रहा है।
इस शोधकार्य हेतु आर्थिक सहयोग प्रदान करके श्रुतज्ञान की सेवा का लाभ लेने वाले- वात्सल्यमूर्ति सुश्राविका श्रीमती ज्योतिबाला जैन (धर्मपत्नी) उदारमना सेवाभावी श्री राजेन्द्रकुमारजी जैन एवं उनके परिवार को भी मैं, मेरी गुरुणी मैय्या की ओर से एवं समस्त साध्वीमण्डल की ओर से उनकी धर्मभावना को साधुवाद देती हूँ।
ऐसे समय में, मैं शाजापुर श्रीसंघ को भी कैसे भुला सकती हूँ, जिनकी मैं सदा-सर्वदा ही ऋणी हूँ, क्योंकि विगत पच्चीस वर्षों से मेरे ज्ञानार्जन में निरंतर ही सहयोग करता रहा है, अतः, श्रीसंघ की भी आभारी हूँ।
मेरे इस शोधकार्य को कम्प्यूटर पर मुद्रण हेतु श्री अनिलजी वर्मा एवं प्रुफ संशोधन में सहयोग हेतु श्री चैतन्यकुमारजी सोनी को भी साधुवाद देती हूँ, जिनके कारण यह शोध-प्रबन्ध यह आकार ले सका।
कुशल शिष्या साध्वी - ज्योत्स्ना
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