________________
रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
कृतज्ञता ज्ञापन
आज मुझे यह कहते हुए अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि- 'रत्नाकरावतारिका में बौद्ध-दर्शन की समीक्षा' नामक मेरे शोधग्रन्थ का लेखनकार्य निर्विघ्नतापूर्वक पूर्ण हो रहा है।
___ मैं सर्वप्रथम श्रद्धेय गुरुभगवन्त आचार्यसम्राट् पूज्यश्री आनन्दऋषिजी म.सा. एवं दाद-गुरुणी मालवसिंहनी, प्रवर्तिनी पूज्यश्री रतनकुँवरजी म.सा. के प्रति विनयांजली प्रस्तुत करती हूँ कि आपकी अदृष्ट कृपा से मेरा यह शोधकार्य सम्पन्न हुआ।
इसके साथ ही मेरी आस्था की केन्द्र पूज्या गुरुणी मैय्या बा.ब्र. श्री कुशलकुँवरजी म.सा. के पादपद्मों में हृदय से नमन करती हूँ कि आपकी सतत प्रेरणा से ही शोध-ग्रन्थ का लेखनकार्य पूर्ण हुआ है। शोध-प्रबन्ध की पूर्णता के इन क्षणों के कुछ मास (माह) पूर्व ही आपके वरदहस्त से हम सब वंचित हो गए, किन्तु आपकी अदृश्य प्रेरणा ही इसे पूर्णता तक पहुँचा सकी है। मुझे इस अध्ययन हेतु आपकी प्रेरणा सदैव ही मिलती रहती थी। आपकी उत्साह भरी प्रेरणा ने ही मेरी आंतरिक चेतना को जाग्रत किया और आपश्री के सान्निध्य में ग्यारहवीं कक्षा से लेकर पीएच. डी. तक की यह यात्रा पूर्ण हुई। मेरे अध्ययन का सारा श्रेय आपश्री को ही है। आज मैंने आपका ही सपना पूरा किया है। यद्यपि मुझे आपकी रिक्तता खलती रहती है, किन्तु फिर भी मैंने लगभग अपना यह लेखन-कार्य आपको अपने समक्ष मानकर ही पूर्ण किया है। मैं अपने इस शोधग्रन्थ को अंजलीबद्ध आपश्री के करकमलों में ही समर्पित करती हूँ। मैं सदैव आपकी अनन्त कृपा की ऋणी रहूँगी तथा यह चाहूँगी कि आपकी यह कृपा निरन्तर ही मुझ पर बरसती रहे और मैं आत्म-साधना के प्रगति-पथ पर बढ़ती रहूँ|
मैं मेरी गुरुणी-तुल्या जिनशासनचन्द्रिका पूज्या डॉ. प्रमोदकुँवरजी म.सा. की भी आभारी हूँ कि जिनसे भी मुझे अध्ययन हेतु प्रेरणा मिलती रही एवं उनकी स्नेहासिक्त कृपा से मेरा शोधकार्य पूर्ण हुआ, अतः, मैं उन्हें सादर वंदन करती हूँ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org