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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा "तो भिक्षुओं ! जो अनित्य है, दुःख है, विपरिणामधर्मा है, क्या उसके संबंध में यह समझना ठीक है कि 'यह मेरा है, 'यह मैं हूँ, 'यह मेरी अपनी है?"
"नहीं, भन्ते !" "भिक्षुओं ! संज्ञा नित्य है या अनित्य ?"
__"अनित्य, भन्ते!" "और जो अनित्य है, वह दुःख है या सुख ?"
"दुःख, भन्ते !" "तो भिक्षुओं ! जो अनित्य है, दुःख है, विपरिणामधर्मा है, क्या उसके संबंध में यह समझना ठीक है कि 'यह मैं हूँ, 'यह मेरा अपना है ?"
"नहीं, भन्ते !" "भिक्षुओं ! संस्कार नित्य हैं या अनित्य ?"
___ "अनित्य, भन्ते !" "और जो अनित्य है, वह दुःख है या सुख ?"
"दुःख, भन्ते !" "तो भिक्षओं ! जो अनित्य है, दुःख है, विपरिणामधर्मा है, क्या उसके संबंध में यह समझना ठीक है कि 'यह मेरा है, 'यह मैं हूँ, 'यह मेरा अपना है ?"
"नहीं, भन्ते !" "भिक्षुओं ! विज्ञान नित्य है या अनित्य ?"
"अनित्य, भन्ते !" "और जो अनित्य है, वह दुःख है या सुख ?"
"दुःख, भन्ते !" "तो भिक्षुओं ! जो अनित्य है, दुःख है, विपरिणामधर्मा है, क्या उसके संबंध में यह समझना ठीक है कि 'यह मेरा है, 'यह मैं हूँ', 'यह मेरा अपना है ?"
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