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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा भी संभव नहीं है। 4. चौथे, घट और घटाभाव में अविष्वग्भाव अर्थात् अभेद - संबंध भी समुचित नहीं है। कदाचित् अभेद-संबंध मान भी लें, तो कौनसा अभेद - संबंध मानेंगे ? 1. क्या सर्वथा अभेद-संबंध मानेंगे ? या 2. कथंचित् - अभेद-संबंध मानेंगे ? 1. सर्वथा अभेद - संबंध मानना तो उचित नहीं है, क्योंकि घट और घटाभाव पृथक्भूत हैं, अर्थात् भिन्न-भिन्न हैं, उनमें सर्वथा अभेद-संबंध नहीं है। चूंकि आप जैन तो दोनों में भिन्नता ही स्वीकार करते हैं, अतः, आप घट और घटाभाव में सर्वथा अभेद - संबंध तो मान ही नहीं सकते। दूसरे, 'कथंचित् - अभेद' संबंध मानने में भी आपके समक्ष बाधा उत्पन्न होगी । घट और घट के नाश में चाहे भेद मानें अथवा अभेद, किन्तु कथंचित्-भेद और कथंचित् - अभेद मानने में तो 'मेरी माता वन्ध्या के समान विरोध ही होगा । मुद्गर आदि कारणभूत सामग्री से घटादि पदार्थ का नाश होता है- ऐसे कथन का आपने जो विस्तार किया है, यह आपका कथन ठीक प्रकार से घटित नहीं होने के कारण, हमारे सिद्धांतानुसार यहाँ यही सिद्ध होता है कि संसार के समस्त पदार्थों के विनाश में मुद्गर आदि किसी भी बाह्य कारणभूत सामग्री की अपेक्षा नहीं रहती है, अपितु पदार्थ अपने उत्पत्ति के समय से ही अपने विनश्वर - स्वभाव को लेकर उत्पन्न होने के कारण दूसरे ही क्षण स्वयं ही नष्ट हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, संसार के समस्त पदार्थ क्षणिक मात्र ही हैं, अतः, कोई भी पदार्थ स्वयं के नाश के लिए किसी भी अन्य हेतु की अपेक्षा नहीं रखता है। इस प्रकार हमारा बौद्ध-सिद्धांत ही युक्तिसंगत सिद्ध होता है । इस प्रकार,, यहाँ बौद्धों का पूर्वपक्ष समाप्त होता है । जैनों का उत्तरपक्ष बौद्धों के पूर्वपक्ष की विस्तृत समीक्षा करते हुए जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि रत्नाकरावतारिका में जैनों के उत्तरपक्ष को प्रस्तुत करते हुए यह कहते हैं कि संसार का प्रत्येक पदार्थ अपनी उत्पत्ति और विनाश में निमित्तभूत सहकारी - कारणों की अपेक्षा रखता है। निमित्त - कारणों के सहकार से ही पदार्थ उत्पत्ति और नाश को प्राप्त होते हैं। 100 99 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 723, 724 100 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 724 Jain Education International 121 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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