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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 119 पक्षों में से अपृथक्भूत पक्ष तो हम बौद्धों द्वारा मुद्गर आदि कारणभूत सामग्रियों की व्यर्थता का दोष बताने के कारण आप जैनों ने स्वीकार किया है। टब, यदि आप यह मानते हैं कि घट घटाभाव से भिन्न है, तो वह पटादि से भी पृथकभूत अर्थात् भिन्न हो होगा। जब घट और घटाभाव- ये दोनों पृथकभूत अर्थात् भिन्न हैं, तो फिर यह घटाभाव घट का ही नाश कैसे कहलाएगा ? यदि घट और घटाभाव- ये दोनों भिन्न हैं, तो जैसे घटाभाव घट से भिन्न होकर घट का नाश कर सकता है, उसी प्रकार घटाभाव पट- भिन्न होकर पट का भी नाश कर सकता है। यदि उस घटाभाव से पटादि का नाश नहीं हो सकता है, तो फिर उस पृथकभूत घटाभाव से घटादि का भी नाश नहीं होना चाहिए। इस प्रकार, आपका यह पक्ष कि घटाभाव घट से भिन्न होकर भी घट का नाशक है, उचित नहीं है। ___टब, यदि जैन अपना बचाव करने के लिए कदाचित् यह कहें कि घट संबंधी पर्यायों का नाश होता है, तो वह घट का ही नाश कहलाएगा, पट की पर्यायों का नाश नहीं कहलाएगा। इसी प्रकार, यदि पट से संबंधित पर्यायों का नाश होता है, तो वह पट का ही नाश कहलाएगा, घटादि का नाश नहीं कहलाएगा। उदाहरणस्वरूप 'गो' आदि पदार्थों की देवदत्त और यज्ञदत्त- दोनों से ही भिन्नता तो समान है, फिर भी यदि गाय देवदत्त के पास होगी, तो वह गाय देवदत्त की ही कहलाएगी, यज्ञदत्त की नहीं। इसी प्रकार, यदि गाय यज्ञदत्त के पास होगी, तो वह यज्ञदत्त की ही कहलाएगी, देवदत्त की नहीं। इस प्रकार, घट-पर्याय का नाश होने पर घट का नाश (अभाव) हआ ऐसा ही कहेंगे, इस स्थिति में पट का नाश नहीं होने से उसे पट का नाश नहीं कहेंगे। ___ पुनः, बौद्ध कहते हैं कि आप जैन यह तर्क देते हैं, तो आप यह बताइए कि घट और नाश- इन दोनों में किस प्रकार का संबंध है- 1. क्या उनमें कार्य-कारण-भाव नाम का संबंध है ? या 2. संयोग-संबंध है? या 3. विशेष्य-विशेषणरूप संबंध है ? या 4. अविष्वक्भाव अर्थात् अभेदरूप 96 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 721, 722 97 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 722 98 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 722 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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