________________
रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा
के सद्भाव का विरोधी होने से जब घटाभाव होगा, तब घट नहीं होगा और जब घट का सद्भाव होगा, तो घट जरूर होगा। पट और घट -- दोनों अविरोधी हैं, किन्तु घट और घटाभाव- इन दोनों में परस्पर विरोध है, इसलिए जब घटाभाव होगा, तब घट नहीं रहेगा, अतः, घटाभाव ही होगा 3
118
अब, हम बौद्ध आप जैनों से यह प्रश्न करते हैं कि घटाभाव - यह घट का विरोधी है, तो 'विरोधी' का तात्पर्य क्या है ? 1. क्या घटाभाव घट का नाशक है - ऐसा अर्थ है ? अथवा 2. यह घटाभाव घट का नाश है--- क्या ऐसा अर्थ है ? आप विरोधी होने का क्या अर्थ मानते हैं, नाशक (नाश करने वाला) या नाश (नाशरूप) 294
घटाभाव ही घट का नाश करने वाला है- ऐसा प्रथम पक्ष मानते हैं, तो फिर मुद्गर आदि को घटादि का नाशक कैसे मान सकते हैं ? अथवा फिर यह बताइए कि वह 'नाश' घटादि से पृथक्भूत ( भिन्न) है या अपृथक्भूत (अभिन्न) है ? इत्यादि जो प्रश्न मुद्गर आदि के संबंध में पूछे गए थे, वे ही प्रश्न घटाभाव के संबंध में हम बौद्धों के हैं कि जिस प्रकार मुद्गर आदि से होने वाला नाश (अभाव) घटादि पदार्थ का नाशक होने से घटादि पदार्थ का उन्मूलन (नाश) करता है, उसी प्रकार घटाभाव से होने वाला भी घटादि पदार्थ का उन्मूलन (नाश) करता है। इस प्रकार,, आप जैन घटाभाव को यदि घट का नाशक मानते हैं, तो यह नाश भी अभावात्मक ही है। दूसरे, यदि अभावात्मक - नाश ही घटादि का नाश करता है, तो इस अभावात्मक-नाश का नाशक अन्य कोई अभावात्मक - नाश होगा। इस प्रकार, मानने से तो अनवस्थादोष की उत्पत्ति हो जाएगी 15
,95
टब, यदि आप जैन उपर्युक्त दोषों से बचने के लिए कदाचित् ऐसा कहते हैं कि घटाभाव - यह घट का विरोधी है। इसका तात्पर्य यह होगा कि घटाभाव घट का नाशक नहीं है, अपितु घट स्वयं ही नाशस्वरूप है । यदि आप दूसरे पक्ष को स्वीकार करते हैं, तो यह बताइए कि घट का विनाशशील घटाभाव घट से पृथक्भूत है या अपृथक्भूत है ? इन दोनों
93 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 721
'रत्नाकरावतारिका, भाग II
रत्नप्रभसूरि, पृ. 721 रत्नप्रभसूरि, पृ. 721
95 रत्नाकरावतारिका, भाग II
94
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org