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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा . 117 वह कारण सामग्री घट का नाश करेगी ही कैसे ? और घटादि के सद्भाव में भी उस नाश की कारण-सामग्री से घट का नाश हो नहीं सकता। इस प्रकार, घट के सद्भाव में भी नाश सम्भव नहीं है और घट के अभाव में भी नाश संभव नहीं है, अर्थात् घटादि का सद्भाव और नाश दो भिन्न-भिन्न काल में होने से दोनों जब अत्यन्त भिन्न हैं तो घटादि पदार्थ और उनके नाश का क्या संबंध है ? अर्थात कोई संबंध नहीं है। उदाहरणस्वरूप, घट और पट- दोनों एक-दूसरे से परस्पर विरोधी होने से अत्यन्त भिन्न पदार्थ हैं। तन्तु आदि के कारणों से भले ही पट उत्पन्न हो, किन्तु अत्यन्त भिन्न ऐसे पट के उत्पन्न होने पर भी घटादि की क्रियाओं में कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी प्रकार, मुद्गर आदि कारणभूत नाश की सामग्री के अत्यन्त भिन्न होने पर घटादि की क्रियाओं में कोई फर्क नहीं पड़ता। जैसे पट की उत्पत्ति और नाश से घट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, वैसे ही घट और घट की नाशक सामग्री के भिन्न काल में होने से कोई अन्तर नहीं पड़ता। पट आदि के अथवा नाशक मुद्गर आदि के अत्यन्त भिन्न होने पर भी भूतल पर रहने वाला घट स्वयं के सद्भाव का बोध कराता है तथा जलधारण आदि की अर्थक्रिया भी करता है। जब घट का नाश हो ही जाए, तो उसकी अर्थक्रिया को भी विराम मिलता है। अत:,, नाश समकाल में हो सकता है, न कि उत्तरकाल में। यदि समकाल में नाश होना मानेंगे, तो क्षणिकवाद मानना पड़ेगा और यदि उत्तरकाल में नाश होना मानते हैं, तो परस्पर अत्यन्त विरोधी घट का सत्ताकाल और घटाभावकाल में घट का नाश कैसे होगा ? घट और नाश- दोनों जब पृथकभूत हैं, तो घट का नाश कैसे होगा? जो उस समय है ही नहीं, अर्थात् उस काल में जिसका अस्तित्व ही नहीं है, वह घट का नाश कैसे करेगा ? अतः, आपका पृथकभूत वाला पक्ष भी उचित नहीं है। पुनः, बौद्ध कहते हैं कि कदाचित आप जैन ऐसा मानते हैं कि घट और पट परस्पर अविरोधी (अव्याघातक) हैं। इन दोनों के अविरोधी होने से तन्तु आदि से घट से पट की उत्पत्ति भी होती हो, किन्तु घट का अभाव होता नहीं है। अविरोधी होने से पट के उत्पन्न होने पर घट की उत्पत्ति और घट का नाश हो- ऐसा नहीं है। भले ही पट की उत्पत्ति हो, भले ही पट का नाश हो, किन्तु पट की उत्पत्ति और नाश का प्रभाव घट पर नहीं पड़ता है, घट का अभाव क्यों होगा? इसके विपरीत, घट का अभाव घट 92 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 720, 721 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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