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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा नाश के समान ही घट की उत्पत्ति भी मुद्गर आदि से ही हो जाना चाहिए। दंड, चक्र आदि अन्य कारण-सामग्री की क्या आवश्यकता है ? अतः, घटादि के नाश में मुदगर आदि कारणभूत सामग्री व्यर्थ ही है। वस्तुतः, यदि आप नाश या उत्पाद की कारण-सामग्री को पदार्थ से अभिन्न मानते हैं, तो आपने हमारे हेतु को जो असिद्धहेत्वाभास कहा, वही दोष आप जैनों के सिद्धांत पर भी लागू होगा।
पुनः, बौद्ध जैनों से कहते हैं कि यदि आप नाश के कारणभूत मुद्गर आदि सामग्री को घटादि पदार्थ से पृथकभूत (भिन्न) मानते हैं, तो यह बताइए, वह नाश करने वाली मुदगर आदि सामग्री घटादि पदार्थ के समकालीन है या उत्तरकालीन ? यदि समकालीन है, तो क्या जब घटादि पदार्थ विद्यमान हो, उसी समय उसका नाश होता है ? अथवा यदि उत्तरकालीन है, तो क्या घटादि पदार्थ के अभाव-काल में उसका नाश होता है ? यदि आप प्रथम पक्ष को मान्य करते हैं कि नाशवान् पदार्थ और नाश की कारण सामग्री समकालभावी है, तो दो जुड़वा भाइयों के समान घटादि पदार्थों का सद्भाव और उनका अभाव- दोनों समकाल में ही होना चाहिए, साथ ही दोनों के समकाल में होने के कारण वे परस्पर अविरोधी होंगे, अर्थात् घटादि पदार्थ और उनका अभाव- दोनों को एक साथ होना चाहिए, किन्तु ऐसा होता नहीं है। जब घट होता है, तब घटाभाव नहीं होता है और जब घटाभाव होता है, तब घट नहीं होता । जब दोनों को समकाल मानते हो, तो घट के उत्पन्न होते ही घट का नाश हो जाना चाहिए। उत्पन्न होते ही नाश भी हो गया, यदि ऐसा समकाल भावी मानेंगे, तो फिर पृथक्भूत (भिन्न) मानने का आपका सिद्धांत ही व्यर्थ होगा तथा उत्पत्ति के काल में ही नाश हो गया- ऐसा दोनों समकाल भावी मानने से तो आपने हम बौद्धों के क्षणिकवाद को ही स्वीकार कर लिया- ऐसा प्रतीत होगा, अतः, यह प्रथम पक्ष मानना उचित नहीं है।"
अब यदि आप जैन यह कहते हैं कि घटादि पदार्थ के सत्ताकाल को और उनके नाशकाल को उत्तरकाल भावी मानते हैं, आप तो भले ही मानें, उससे घटादि की अर्थक्रिया, अर्थात् जलधारण आदि की क्रिया में तथा घटादि के ज्ञान में कोई अन्तर नहीं आने वाला है। यदि घट का अभाव ही है, जो अब घट सत्ता में है ही नहीं, अर्थात् उसका अभाव है, तो
90 रत्नाकरावतारिका, भाग II रत्नप्रभसूरि, पृ. 720 91 रत्नाकरावतारिका, भाग II रत्नप्रभसूरि, पृ. 720
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