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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
नित्य-स्वरूप के कारण इन्द्र आदि भी नष्ट करने में समर्थ नहीं हैं, तो फिर उस पदार्थ का नाश कैसे होगा ? अर्थात् नित्य-पदार्थ नष्ट नहीं होता। इस प्रकार, आप या तो पदार्थ के विनश्वर स्वभाव को मानेंगे ? या अविनश्वर स्वभाव को मानेंगे ? यदि आप विनश्वर स्वभाव को मानते हैं, तो आपने हमारे क्षणिकवाद को स्वीकार कर लिया है और यदि आप अविनश्वर स्वभाव को मानते हो, तो आपका यह तर्क भी उचित नहीं है कि किसी कारण - सामग्री से पदार्थ नष्ट होता है, अतः, प्रलय या मुद्गर आदि को हेतु मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। हमारा सिद्धांत तो यही कहता है कि पदार्थ का उत्पाद सहेतुक है तथा उसका नाश निर्हेतुक है। 7 बौद्ध पुनः, बौद्ध जैनों से यह प्रश्न करते हैं कि नाश के कारणभूत सामग्री मुद्गर आदि घटादि पदार्थ से पृथक्भूत ( भिन्न) है या अपृथक्भूत (अभिन्न ) है ? यदि आप घट और उसके नाश की कारण- सामग्री को अभिन्न मानेंगे, तो प्रश्न यह उत्पन्न होगा कि जब दोनों अभिन्न होकर एकस्वरूप हो गए, अर्थात् दोनों में कोई भेद ही नहीं रहा, तो क्या घट स्वयं ने ही स्वयं का नाश कर लिया ? चूँकि घट में विनाशशील होने की पर्याय - शक्ति तो पूर्व से ही रही हुई है, अतः, जब घट स्वयं ने ही स्वयं का नाश कर लिया, तो फिर मुद्गर आदि कारण - सामग्री का क्या प्रयोजन रहा? 88
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जैन इस पर, जैन कहते हैं कि यदि घट स्वयं से ही नाश को प्राप्त हो जाता है, तो फिर घट स्वयं को स्वयं से ही उत्पन्न हो जाना चाहिए, उसके लिए मिट्टी, पानी, चक्र आदि की क्या आवश्यकता है ? यदि घट स्वयं घट से उत्पन्न हो जाता है, तो घट स्वयं घट से नष्ट भी हो जाएगा, तब मुद्गर आदि कारण - सामग्री से कोई प्रयोजन नहीं रहेगा, किन्तु ऐसा होता नहीं है, अतः आप बौद्धों की यह मान्यता समीचीन नहीं है कि घट की उत्पत्ति के लिए तो कारण - सामग्री अपेक्षित है, किन्तु विनाश के लिए नहीं, विनाश वस्तु का सहज स्वभाव है। "
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बौद्ध इस पर बौद्ध - दार्शनिक यह तर्क देते हैं कि यदि आप जैन यह कहते हैं कि घट का नाश मुद्गर आदि ने किया, तो फिर तो
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