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________________ 114 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा आदि पदार्थ का नाश होने में आप मुद्गर आदि को निमित्त कारण के रूप में स्वीकार करते हैं, तो क्या वे घट आदि पदार्थ, जो अपनी उत्पत्ति के समय विनश्वर स्वभाव वाले उत्पन्न हुए हैं, ऐसे घटादि पदार्थ को मुद्गर आदि नष्ट करते हैं, अथवा आप यह मानते हैं कि अविनश्वर स्वभाव (अक्षणिक स्वभाव) रूप उत्पन्न हुए उन घटादि पदार्थ को ये मुद्गर आदि नष्ट करते हैं ? यदि आप जैन यह कहते हैं कि घटादि पदार्थ अपनी उत्पत्ति के समय से ही अविनश्वर स्वभाव लेकर उत्पन्न हुए हैं और उन्हीं अविनश्वर स्वभाव वाले पदार्थ को ही मुदगर आदि कारण-सामग्री नष्ट करते हैं, तो आपका यह कथन कदापि उचित नहीं है, क्योंकि पदार्थ का अपना जो निजी स्वभाव होता है, उस स्वभाव को इन्द्र भी अन्यथा करने में समर्थ नहीं होते हैं। जो वस्तु (पदार्थ) स्वभाव से ही अविनश्वर है या अक्षणिक है, उसे अन्य सैकड़ों कारण-सामग्री मिलकर भी नष्ट नहीं कर सकते। दूसरे, यदि आप यह कहते हैं कि घटादि पदार्थ उत्पत्ति के समय से ही नश्वर स्वभाव वाले उत्पन्न होते हैं, तो जन्मजात ही जिसका स्वभाव नष्ट होना है, अर्थात् वे स्वयं ही नष्ट होने की योग्यता रखते हैं, तो उन विनश्वर स्वभाव वाले पदार्थ को नष्ट करने के लिए किसी कारण-सामग्री की कोई अपेक्षा नहीं रहती है, क्योंकि दंड, चक्र, मिट्टी आदि कारण-सामग्री से घट के उत्पन्न होते ही उसका नश्वर स्वभाव भी उत्पन्न हो जाता है, अर्थात् घटादि पदार्थ विनश्वर स्वभाव को लेकर ही उत्पन्न होते हैं, अतः, विनश्वर स्वभाव वाले अन्य कारणों को मानने की कोई आवश्यकता नहीं रहती है। यदि विनश्वर घटादि पदार्थ को नाश होने में आप जबरदस्ती मुद्गर आदि पदार्थ को सहायक सामग्री के रूप में स्वीकार ही करेंगे, तो फिर तो संसार के प्रत्येक विनश्वर स्वभाव वाले पदार्थ के लिए पदार्थानुरूप वैसी-वैसी विनाशक हजारों कारण-सामग्री माननी ही पड़ेगी। फिर, एक कारण सामग्री के लिए दूसरी कारण-सामग्री की आवश्यकता होगी, दूसरी के लिए तीसरी की आवश्यकता होगी, इस प्रकार, अनवस्थादोष उत्पन्न हो जाएगा और कारण-सामग्रियों का कहीं भी विराम नहीं होगा। बौद्ध कहते हैं कि शास्त्रों में भी ऐसा उल्लेख मिलता है कि जो पदार्थ स्वयं विनश्वर स्वभाव लेकर उत्पन्न हुआ है, वह अपने उत्पत्तिकाल से ही अपने विनाशशील स्वभाव के कारण उत्पन्न होने के पश्चात तुरंत नष्ट होने वाला ही है। वह किन्हीं प्रलय या अन्य कारणों से नष्ट हुआ है- ऐसा मानने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसी प्रकार, जो पदार्थ अनश्वर (नित्य) स्वभाववाला उत्पन्न हुआ है, उसे अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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