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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
कैसे कह सकते हैं कि पदार्थ सापेक्ष है अथवा निरपेक्ष ? ऐसे कथन से तो आपका क्षणिकवाद ही सर्वप्रथम खंडित हो जाता है | 85
पुनः, आप बौद्ध यदि ऐसा ही कहते हैं कि अन्तिम कारण - सामग्री से ही बीज उत्पन्न होता है और उसे किसी अन्य कारण - सामग्री की अपेक्षा नहीं रहती, तो इसी प्रकार, प्रतिक्षण विनश्वर स्वभाव वाले पदार्थ को भी किसी अन्य सापेक्ष पदार्थ (अन्य कारण - सामग्री) की अपेक्षा नहीं रहती है, क्योंकि प्रत्येक पदार्थ क्षणक्षयी स्वभाव वाले हैं। पूर्वक्षण में उत्पन्न होते ही उत्तरक्षण में नष्ट हो जाते हैं, अतः, क्षणक्षयी - पदार्थ निरपेक्ष ही होते हैं, उन्हें किसी भी विनाशक - सामग्री की अपेक्षा नहीं रहती है ।
पुनः, जैन कहते हैं कि एकान्त-क्षणिकवाद की सिद्धि में आप (बौद्ध) जो यह तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं कि सभी पदार्थों को स्वयं के विनाश के लिए अन्य विनाशक - सामग्री की अपेक्षा नहीं होने से वे निरपेक्ष होते हैं, तो आपका यह हेतु असिद्धहेत्वाभास से ग्रसित होने से पदार्थ की सिद्धि कैसे कर पाएगा? जब आपका हेतु ही असिद्ध है, तो फिर पदार्थ की सिद्धि कैसे करेंगे ? मान लो कि एक घट है, यदि वह घट विनष्ट होता है, तो कैसे विनष्ट होता है ? क्या यह अपने ही विनाशशील स्वभाव से नष्ट हुआ? आपका यह हेतु तो पक्ष में संभव नहीं है। वस्तुतः, किसी बलवान् पुरुष के हाथ में रहे हुए मुद्गर के प्रचंड प्रहार से वह घट नष्ट हो जाता है, अर्थात् फूट जाता है, तो यह मानना होगा कि घट के विनष्ट होने में पुरुष एवं मुद्गर आदि निमित्त - कारण - सामग्री ही कारणभूत रही। ऐसा मानने पर तो विनाश में भी अपेक्षा रही हुई है, इसलिए हम जैन यह कहते हैं कि आपका हेतु पक्ष में, अर्थात् वस्तु के विनाशशील स्वभाव या क्षणिक - एकान्त में घटित नहीं होता है, अतः आपका हेतु असिद्धहेत्वाभास नामक दोष से ग्रसित है। 86
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बौद्ध - यहाँ बौद्ध अपने मत की पुष्टि करते हुए जैनों से कहते हैं कि हमारा हेतु असिद्धहेत्वाभास नहीं है, अपितु साध्य की सिद्धि में साधनभूत है। आप हमारे हेतु को असिद्ध नहीं कह सकते। आपके द्वारा दी गई असिद्धता हमारे हेतु में घटती नहीं है, इसलिए हमारा हेतु अपने साध्य की सिद्धि में निर्दोष है। आप जैन हमारे इस प्रश्न का उत्तर दें कि घट
85 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 718
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