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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा मान लेना चाहिए। आपके उपर्युक्त कथन से तो आपके एकान्त - क्षणिकवाद की सिद्धि कैसे होगी ? आपके क्षणिक - एकान्तपक्ष में 'युगपत् अक्रम वाला पक्ष भी संभव नहीं है, अर्थात् आपके क्षणिकवाद में क्रम या अक्रम से होने वाली अर्थक्रिया संभव नहीं होने से आपका "सत्व हेतु' विरुद्ध - हेत्वाभास से युक्त सिद्ध होता है। 24 112 पुनश्च जैनाचार्य बौद्धों से कहते हैं कि सभी पदार्थ 'एकान्त - क्षणक्षयी ही हैं- इसे सिद्ध करने के लिए आप जो यह अनुमान प्रस्तुत करते हैं कि प्रत्येक पदार्थ निरपेक्ष है, उनसे अन्य सहायक सामग्री की अपेक्षा नहीं है, तो हमारा आपसे यह प्रश्न है कि जैसे कोई पदार्थ उत्पन्न हो रहा है, तो उत्पन्न होते समय में वह अन्तिम कारणसामग्री ही कारणरूप में रही या उसके पूर्व की सहायक - सामग्री के रूप में सहायक रही ? उदाहरणस्वरूप, बीज मिट्टी में पड़ा है, जल, हवा, मिट्टी, खाद, आतप आदि सहायक - सामग्री से धीरे-धीरे अंकुरित होता है, तो बीज के अंकुरण होने में इन सभी सहायक - सामग्रियों में से मात्र अन्तिम कारण - सामग्री ही कारणरूप में रहती है, अर्थात् जिस समय अंकुरण हुआ ( बीज फूटा ), उस समय ही वह सामग्री थी या पहले भी थी ? यदि आप यह कहते हैं कि मात्र अन्तिम कारण - सामग्री से ही बीज अंकुरित हुआ, तो ऐसा कभी संभव ही नहीं है, क्योंकि क्या आप बौद्ध यह बता सकते हैं कि अन्तिम कारण - सामग्री कौनसी है ? क्या आप मात्र जल को, या हवा को, या मिट्टी को, या खाद को इनमें से किसको अन्तिम कारण - सामग्री मानेंगे ? इनमें से किसी एक को ही अन्तिम कारण - सामग्री मानने पर तो उस एक से तो कभी बीज अंकुरित हो ही नहीं सकता। यदि आप यह कहते हैं कि यह अन्तिम कारण - सामग्री पूर्व में भी थी, तो वह निरपेक्ष कहाँ रही और क्षणक्षयी भी कहाँ रही ? वस्तुतः, बीज तो बीज के योग्य सभी सहायक कारण - सामग्रियों के सहयोग से ही उत्पन्न होता है । पदार्थ सर्वथा निरपेक्ष होकर उत्पन्न नहीं हो सकता, उसमें कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में सापेक्षता रही हुई है। जब आप बौद्ध संसार की सभी वस्तुओं को सापेक्ष मानते हैं, तो उसमें निरपेक्षता कहाँ रही। जब आप बाह्यार्थ की सत्ता को स्वीकार ही नहीं करते, तो बाह्यार्थ को स्वीकार किए बिना आप 84 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 717 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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