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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा
है। आप बौद्धों ने हमारे द्वारा इस तीसरे पक्ष को मानने के संबंध में जो यह आक्षेप लगाया कि यदि हम जैन पर्याय-शक्ति को द्रव्य से भिन्नाभिन्न मानते हैं, तो प्रथमतः पर्याय-शक्ति द्रव्य से अभिन्न होने के कारण पर्याय को उत्पन्न करने वाला द्रव्य क्षणिक हो जाएगा, क्योंकि पर्याय क्षणिक है, किन्तु इस सम्बन्ध में हम जैनों का उत्तर यह है कि हम जैन पदार्थ या द्रव्य को एकान्त-नित्य भी नहीं मानते हैं, जिससे किसी अपेक्षा-विशेष से पदार्थ में क्षणिकता को स्वीकार करने में कोई दोष उत्पन्न हो ? हम जैन तो समस्त पदार्थों को द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से अक्षणिक (नित्य) भी मानते हैं, तो पर्यायार्थिकनय की अपेक्षा से क्षणिक भी मानते हैं। हम जैन तो आपके एकान्त-क्षणिकवाद का ही खण्डन करते हैं, कथंचित्-क्षणिकत्व तो हमें भी अभिष्ट ही है। आप बौद्ध मात्र एकान्त-क्षणिकता के पक्षधर हैं, इसी कारण से हमारा आपसे विरोध है।"
बौद्ध - इस पर बौद्धों का कहना है कि आप जैनों के अनुसार भी पर्याय के क्षणिक होने से पर्याय से अभिन्न द्रव्य भी तो क्षणिक ही होगा। आप जैन यह मानते हैं कि पर्याय प्रतिक्षण बदलती रहती है, तो प्रतिक्षण बदलने वाली पर्याय तो क्षणिक ही होगी, अतः, पर्याय और द्रव्य तो क्षणिक ही होंगे, कथंचित् क्षणिक नहीं होंगे।
जैन - जैन कहते हैं कि हम पर्याय को भी द्रव्य से कथंचित्-भिन्न मानते हैं, एकान्त-अभिन्न नहीं मानते हैं। हम पर्याय को कथंचित्-भिन्न और कथंचित् अभिन्न- ऐसी उभयात्मक (भिन्नाभिन्न)
मानते हैं।
बौद्ध - इस पर बौद्ध यह आपत्ति उठाते हैं कि एक ही द्रव्य पर्याय के साथ कथंचित्-भिन्न और कथंचित्-अभिन्न (भेदाभेदरूप) कैसे हो सकता? दोनों में परस्पर विरोध होने से एक ही स्थान में और एक ही समय में दोनों एक साथ कैसे रह सकते हैं ?"
जैन - जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि बौद्धों के इस तर्क का खण्डन करते हुए कहते हैं कि एक ही द्रव्य का अपनी पर्याय से एक ही समय में दो
14 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 713, 714 75 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 714 76 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 714 77 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 714
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